अनंत तस्‍वीरें दृश्‍यावलियां ख़बर ब्‍लॉग्‍स

कोशी की सफलता और उसकी संवेदनशीलता

हमारी आशा के विअपरीत कोश्य्य १०वी के इम्तहान में ७६% अंक लाई। उसके खिलानादाद स्वभाव ने मुझे बहुत दारा रखा था। उसकी यह अप्रत्याशित सफलता हम सभी को अभिभूत कर गई। कहने को आज के अंक आधारित जगत में ७६% का कोई महत्त्व नही, मगर हमने कभी भी अपने बच्चों को अंकों की होड़ में जाने देना नही चाहा। बस यह चाहा की वे आगे बढें, कुछ करे, और इसके लिए पढाई ज़रूरी है, सो वे पढ़े। तोषी ने तो ख़ुद को बेहद अच्छे से स्थापित कर लिया है, अब कोशी के सेटल होने की बात है।
उसकी सफलता के साथ-साथ उसकी संवेदनशीलता भी गौर कराने वाली है। नौन्वेज खाने में उसकी जान बसती है। यह गुन बच्चों में अजय से आया है। लेकिन कल जब घर में मछली बनी, तो कोशी ने खाने से इनकार कर दिया। पूछने पर बताया की बारिश में मछली नही कहानी चाहिए, क्योंकि यह उसके ब्रीडिंग का समय होता है। एक मछली को खा जाने से न जाने कितनी मछलियों को संसार में आने से हम रोक देते हैं।
समय-समय पर इस तरह की कई बातें हामी चुंका देती हैं। मुझे लगाने लगता है की अब वह बड़ी हो गई है और समझदार भी। संवेदना आगे भी उसकी बनी रहे, उसकी ही नहीं, बल्कि सभी की बनी रहे, यह कामना है।

अपने ही देश में सांस्कृतिक झटके झेल रही तोषी

कल तोषी लाहौर से लौट आई- दिल्ली। दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक आम औपचारिकता की ठस रुई मी सने स्वागत वचन से उसका भी स्वागत हुआ। आने से पहले कुछ तकनीकी कारणों से उअसके अन्य दोस्त नहीं आ सके। इससे वह दुखी तो थी ही। सारे समय विमान में बैठकर रोंती आई। दोस्तों, जगह, वहाँ के लोगों से बिछड़ने के गम के साथ- साथ अचानक घटी यह घटना। इमाग्रेशन चेक के बाद उसके पास फोन नईं रह गया था, वहां के लोकल फोन न होने के कारण। उसने एकदम से बाल हठ की कि अपने इन दोस्तों से बात किए बिना वह विमान में बैठेगी ही नही, और हैरानी भरी खुशी यह कि उसकी यह इच्छा पीआईए यानी पाकिस्तान इन्तारानैशानल एयर लीं के अधिकारियों ने पूरी की।
दिल्ली हवाई अड्डे पर भी उसकी यही पुकार रही कि मुझे दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर नहीं, लाहौर के अलामा इकबाल हवाई अड्डे पर उतरना है। यह एक सान्स्क्रिय्तिक मांग है। मुझे पता नहीं कि भारत का कोई हवाई अड्डा देश के किसी भी साहित्यकार के नाम पर हो। मफ्गर पाकिस्तान में ऐसा है।
दिल्ली में आने के बाद यहां के लोगों की बात-चीत के टोन से उसे लगात्तार झटके डर झटके लग रहे हैं। वह यही कहती फ़िर रही है कि "कर लेते हैं भैया, इसमें इतना चीखने की क्या ज़रूरत है। ज़रा प्यार से तो बोलो।" यह प्यार बाहरी बोली अब वह मिस कर रही है। वहाँ का ऍम आदमी भी अपने लहजे में पूरादाब व कायदे बरतता है। ऑटो, तैक्सीवाले, भी 'आयें,' बैठें, देखें, करें, बिटिया से संबोधित करता है। सबसे पहले शहर में घुसते ही उसके मुंह से निकला- "उफ़, कितनी गंदगी है?' मैं हंस पडी। अभी उसका मुम्बई आना बाक़ी ही है।
यह सब अपने देश को कमतर करके आंकने की कोअशिश नहीं है। यह चंद वे बातें हैं, जिनसे हमारा -आपका जीवन रोजाना प्रभावित होता है, फ़िर ये ही बातें हमारी आम आदतों में तब्दील हो जाती हैं। तोषी को फ़िर से यहाँ के जीवन के अनुसार ढलना होगा। मगर जहाँ कहीं भी उसे वहाँ की बेहतरी नज़र आयेगी, उसके मुंह से उफ़ तो निकलेगा ही- हमारी-आपकी तरह- सहज, सामान्य।

तोषी -कोशी को समर्पित यह पुरस्कार

आज तोषी अपने ९ महीने की पाकिस्तान -पढाई की मियाद पूरी करके भारत लौट रही है। उसके स्वर में एक साथ देश लौटने की खुशी व उत्तेजना है तो दूसरे स्वर में वहां के लोगों से बिछड़ने के गम भी। लाहौर में उसे इतना प्यार, सम्मान, मिला, जितने कि हमने कल्पना तक न की थी। उसकी दीन सलीमा हाशमी ने मुझसे कहा यहा कि "आप अपनी बेटी को हमें वक्फ में दे दीजिये।'' ९ महीने के दरमियाँ उसके २ एकल और ३ ग्रुप शो हुए। उसके काम के लिए उसे वहाँ के पंजाब के गवर्नर द्वारा सम्मानित किया गया। अपने शो के दुरान अपने काम को लेकर वह प्रेस और मीडिया में छाई रही।

आज वह लौट रही है और अज ही मुझे एक ड्राइंग प्रतियोगिता में पुरस्कार मिला। चित्र बनाना मुझे आता नहीं, लेकिन उसेदेखके जो थोडा बहुत समझ पाई, उसमें धर दी कोशी ने। आज जब यह पुरस्कार ले रही थी, तो दोनों बहनें मेरे तसव्वर में थीं। आम तौर पर लोग कहते हैं कि माँ-बाप से बच्चों की पहचान बनाती है। लेकिन मुझे यहाँ यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि यहाँ , आज मेरी पहचान मेरी तोषी, कोशी के कारण बनी है। कोशी ने ही बताया कि मुझे कैसे चित्र बनाना चाहिए और उसकी राय पर मैंने अमल किया। यह पुरस्कार मेरा नहीं, उन दोनों का है।

इस साल के कुछ संयोग रहे हैं कि एक साथ, एक ही दिन दो-दो अहम् घटनाएँ होती रही हैं।- मेरा जन्म दिन और अजय को पुरस्कार, हमारी शादी की २५वीन् सालगिरह और तोषी को पुरस्कार और आज उसका लौटना और मुझे पुरस्कार। इस संयोग को नमस्कार और तोषी व कोशी के लिए यह इनाम।