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तिन्नी और अख़बार

तिन्नी अपनी ड्राइंग अख़बार में छपा देखना चाहती है। उसका कहना है कि दुनिया जान जाएगी। धरती को पता हो जाएगा। कल उसने कहा कि पापा फोटो भी होना चाहिए। तिन्नी को यह नया शौक चढ़ गया है। घर के सारे बेकार पन्नों के पीछे तिन्नी ने रंग दिया है। दिन भर रंगती रहती है। अब मैं जानना चाहता हूं कि छह साल की बेटी की ड्राइंग को छापने के लिए कौन सा अखबार है। हर घर में तमाम बच्चे दिन भर में न जाने कितनी ड्राइंग बना रहे हैं। उनका विश्लेषण करने के लिए कोई कला विशेषज्ञ क्यों नहीं है। मकबूल फिदा की कला के मर्म को समझने वाले चाहिए तो इन बच्चों की कला के मर्म में भी झांका जाना चाहिए।

ये सिर्फ स्कूल के बोर्ड पर टांगने के लिए नहीं हैं। यह बात इसलिए नहीं कह रहा कि मेरी बेटी अखबार में छपना चाहती है। इसलिए भी कह रहा हूं कि कई स्कूलों में टंगे ड्राइंग पर मेरी नज़र पड़ती है। हर बच्चा सूरज,बाघ और आसमान को अलग अलग रंगों,आकारों और नज़रों से देखता है। किसी को यह काम करना चाहिए। पता करना चाहिए कि बच्चे बादलों को किन किन रंगों से रंगना पसंद करते हैं, देखना चाहिए कि बच्चों की कल्पना में मिसाइल का रंग लाल क्यों हैं। तिन्नी की एक ड्राइंग परेशान कर रही है। गहरे लाल रंग का राकेट। उसका किनारे का रंग काला है और पन्ने के चारों तरफ नीले रंग का बार्डर।
उसने एक शिवलिंग बनाई है। काले शिवलिंग पर लाल रंग का टीका लगा दिया है। लाल रंग से सना एक हाथ है जो पूजा करता है। नारंगी और पीले रंग में वो परिवार का पूरा चित्र देखती है। न जाने कितने बच्चों की कमाल की कृतियां मां बाप सहेज कर रख रहे हैं जो बाद में पुराने होते होते, मकान बदलते बदलते कहीं खो जाएंगे। एकाध बचे रह जाएंगे। कभी किसी को दिखाने के लिए।

9 comments:

Amitraghat said...

"तिन्नी से ही पूछ्ना चाहिये कि उसने क्या बनाया है और कौन-सा रंग और क्यों भरा है ? जबाब खुद-ब-खुद पता चल जाएगा जब वह केवल मुस्कराएगी...."
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com

शायदा said...

ये कहानी हर घर की है। जहां तक हाथ जाएं ये चित्रकारी दीवारों तक पर होती है। कागज और ड्राइंग शीट़स तो अनगिनत चाहिएं इन्‍हें, लेकिन कितना अच्‍छा लगता है जब आप एक रात बहुत उदास होकर घर लौटें और तकिए के पास आपकी एक पेंटिंग बनाकर रख दी गई हो,। बच्‍चे न हों तो जीवन कितना रंगहीन हो जाए।

anchui jindagi said...

doston vakai hum kabhi kisi bache ko samajh ni pate.shuruvat to tabhi se ho jati h jab phli bar koi bacha ek pen uthakar deewar par chitrkari kar deta h.par afsos tab hota h jab uski ma ya pita use esa krne k liye marte h.kyun na hum sab in fulon ki pratibha ko murjhane ki bjaye khilne dein.

स्वरांगी साने Swaraangi Sane said...

kabhi kabhi tini to ha kahana chaahti hai par munh se nikal jata hai na http://maitrininchyaguppa.blogspot.com/

पुनीता said...

aapney to mere man ki bat kah di. meri bitiya bhi apney papa sey drawing bana ker dikhati hai aur kahti hai ki ishey akhbar main chapva dijiyeh. aur ushkey papa yah kah ker karij ker detey hain ki kutch atcha banao to hi chap sakta hai. aur vah tin char koshish kye bad ab papa sey nahi kahti.

pragya barthwal said...

isko padhne ke baad ek hi baat yaad aayee .. bachpan se likhne ka shauk tha... main sirf saat saal ki thee jab papa ne mujhe "nandan" me ek compitition me participate karne ko kahaa.. maine likha aur inaam bhi jeeta .. uske baad jo silsila hua to na jaane bachchon ki kitni kitabon me likha ..aur phir IIMC me selection ..aur uske baad aaj likhna likhna uar sirf likhna ... tarif bhi miltee hai aur log poochhte bhi hain..aap itna badhiya kaise likhtee hain... ek hi jawaab hai .. " jis din papa ne mujhe nandan me likhne ko kahaa tha us din se unhone mujhe dunia ka sabse keemti tohfa de diya tha ...likho aur khud pe bharosa rahko betee ... "

Unknown said...

beshak makaan badalte-badlate kho jayenge... man ko jinjhod gayin ye lines...
Alka Tiwari(Adv.)

हरीश सिंह said...

आदरणीय स्वजन , सादर प्रणाम

आपके बारे में हमें "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" पर शिखा कौशिक व शालिनी कौशिक जी द्वारा लिखे गए पोस्ट के माध्यम से जानकारी मिली, जिसका लिंक है...... http://www.upkhabar.in/2011/03/jay-ho-part-2.html

इस ब्लॉग की परिकल्पना हमने एक भारतीय ब्लॉग परिवार के रूप में की है. हम चाहते है की इस परिवार से प्रत्येक वह भारतीय जुड़े जिसे अपने देश के प्रति प्रेम, समाज को एक नजरिये से देखने की चाहत, हिन्दू-मुस्लिम न होकर पहले वह भारतीय हो, जिसे खुद को हिन्दुस्तानी कहने पर गर्व हो, जो इंसानियत धर्म को मानता हो. और जो अन्याय, जुल्म की खिलाफत करना जानता हो, जो विवादित बातों से परे हो, जो दूसरी की भावनाओ का सम्मान करना जानता हो.

और इस परिवार में दोस्त, भाई,बहन, माँ, बेटी जैसे मर्यादित रिश्तो का मान रख सके.

धार्मिक विवादों से परे एक ऐसा परिवार जिसमे आत्मिक लगाव हो..........

मैं इस बृहद परिवार का एक छोटा सा सदस्य आपको निमंत्रण देने आया हूँ. यदि इस परिवार को अपना आशीर्वाद व सहयोग देने के लिए follower व लेखक बन कर हमारा मान बढ़ाएं...साथ ही मार्गदर्शन करें.


आपकी प्रतीक्षा में...........

हरीश सिंह


संस्थापक/संयोजक "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" www.upkhabar.in/

Satish Saxena said...

सुबह सबेरे, उठते इसके
चहक उठे, मेरा घर बार !
इसके जाने से ही घर में
सूना सा लगता संसार !
जलतरंग सी जहाँ बजेगी,मधुर सुधा बरसाए प्रीत !
बाबुल का सम्मान बढाए,करें प्रभावित इसके गीत !