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एक कमज़ोर क्रिकेट प्रेमी की आत्मकथा

मैं एक कमज़ोर प्रधान इंसान हूं। घबराहट से ओत-प्रोत। अपनी इसी ख़ूबी और मैच फिक्सिंग से आहत होने के कारण क्रिकेट देखना छोड़ दिया। बचपना में टीम इंडिया का कप्तान बनने की ख़्वाहिश रखने वाला मैं कभी तीन गेंद लगातार नहीं फेंक सका। तीनों गेंद पिच की बजाय तीनों स्लिप से बाहर जाती थीं और मेरे मुंह से झाग निकलने लगता था और कपार झन्ना जाता था। बहुत रो-धो के एकाध मैच में खेलने का मौका मिला भी तो इस वजह से कैच नहीं लिया कि ड्यूज़ बॉल से हाथ फट जाएगा। इस गुस्से में एक फिल्डर ने एक थाप लगा भी दिया। थाप चांटा का लघुक्रोधित वर्ज़न है। लेकिन टीवी पर टीम इंडिया को खेलते देख किसी कामयाब खिलाड़ी का प्रतिरूप बन हमेशा मैच का आनंद उठाता रहा। सिर्फ जीत के क्षणों में। हारती टीम से इतनी घबराहट होती थी कि मैच देखना बंद कर देते था। कमरे से निकल कर गली में घूमने लगता था। तमाम तरह के देवी देवताओं की झलकियां भी आंखों के सामने से गुज़र जाती थीं। उनके निष्क्रिय होने से भक्ति में कमी आने लगी। इसीलिए क्रिकेट से दूर हो गया। यही वजह है कि क्रिकेट के बारे में मैं उतना ही जानता हूं जितना फिज़िक्स और बॉटनी के बारे में।

मुझे अपनी इस कमज़ोरी पर नाज़ है। मगर तनाव के क्षणों में धीर-गंभीर होने या होने का अभिनय करने वाले तमाम वीरों और वीरांगनाओं से ईर्ष्या ज़रूर होती है। ऐसा लगता है कि जीवन की उपलब्धियां उन्हीं की धरोहर हैं। उनका कितना स्वतंत्र व्यक्तित्व है। मैं धारा में बहता हूं और वो धारा को बनाते या मोड़ते हैं। मानता हूं कि जीवन मे कुछ करने के लिए इस टाइप की बाज़ारू ख़ूबियां होनी ही चाहिएं लेकिन क्या मेरे जैसे कमज़ोर आदमी के लिए कोई सोशल सिक्योरिटी स्कीम नहीं होनी चाहिए। इसीलिए हैरानी होती है कि यहां तक जीवन कैसे जी गया। जो कर रहा हूं वो कैसे हो रहा है।

ऐसे कमज़ोर और पूर्वकालिक क्रिकेट प्रेमी को जनसत्ता के संपादक ओम थाणवी जी ने घर बुला लिया मैच देखने। सपत्निक अविनाश,सुर,सपत्निक समरेंद्र,बिपत्निक मिहिर और विनीत कुमार के बीच मैं अपनी पत्नी के न आने पर अकेला मौजूद रहा। विशालकाय होम थियेटर पर फाइनल। शानदार माहौल में मैच देखते हुए एक बार हिन्दी ग्रंथी कुलमुला उठी और महसूस करने लगी कि कुलीनता हिन्दी का स्वाभाविक लक्षण है। हम हमेशा संघर्ष मोड में नहीं रहते। मनोरंजन और शौक को भी महत्व देते हैं। तभी इतने इंतज़ाम और ठाठ से मैच देखने जमा हुए। इसके बाद भी कई बार ऐसा लगा कि आज इंडिया और मेरा दोनों का फाइनल हो जाएगा। श्रीलंका की टीम बल्लेबाज़ी कर रही थी। भारत के गेंदबाज़ विकेट ले रहे थे मगर रन नहीं रोक पा रहे थे। क्षेत्ररक्षण में हम अच्छा कर रहे थे। मगर श्रीलंका के स्कोर ने मुझे विकट परिस्थिति में डाल दिया। मुझे क्रिकेट और अपनी कमज़ोरी दोनों में से एक को चुनना था। साफ था कि मैं बार-बार अपनी कोमज़ोरी के पक्ष में झुकने लगा।

सहवाग का विकेट मेरे सामने नहीं गिरा। सचिन का गिर गया। धड़कनें ऐसी उखड़ीं कि जान निकलने लगी। थाणवी जी के घर जमा सभी साथी धीर-गंभीर वीर लग रहे थे। अब वक्त आ गया था कि अपनी कमज़ोरी का एलान कर दूं। ताकि कुछ हो गया तो इन्हें सनद रहे कि ज़िला अस्पताल जाना है या एस्कार्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट। मैं भागने का एलान करता और सब चुप करा देते। बैठिये महाराज,कहां जाइयेगा। अच्छा नहीं लग रहा था। टीम इंडिया दबाव में आ रही थी और मैं तनाव में। लगा कि इस महफिल में अकेला कमज़ोर मैं ही हूं।

तभी कैमरा घूमा और मूर्छितावस्था में पड़ी नीता अंबानी और होश उड़ाये आमिर ख़ान की तरफ गया। इन्हें देखकर हौसला बढ़ा। हम तीनों में एक उभयनिष्ठ लक्षण का पता चल चुका था। तीनों दबाव और तनाव के क्षणों में एक साधारण और कमज़ोर दर्शक इंसान की तरह बर्ताव कर रहे थे। लगा कि पांच लाख करोड़ वाली नीता अंबानी को किसी चीज़ की कमी नहीं है। वो भी मेरी तरह मूर्छित हैं। साधारण टेलरिंग वाली कमीज़ पहने मुकेश अंबानी को देख कर लगा कि लाख करोड़ कमाने के बाद भी मोहम्मद टेलर की सिली हुई कमीज़ में मुकेश अपने गांव के चाचा की तरह लग रहे थे। कॉलर बटन वाली नीली कमीज़ में मुकेश बाकी मित्रों जैसे थे। गंभीर और जीत के लिए प्रतिक्षारत। मैं कमज़ोर और तनाव से भागरत। मुकेश अंबानी साधारण कमीज़ में असाधारण लग रहे थे। मगर उनकी पत्नी नीता असाधारण कपड़ों में साधारण लग रही थीं। वो भी तनाव नहीं झेल पा रही थीं और मैं भी नहीं झेल पा रहा था। जब नीता अंबानी,आमिर और उनकी पत्नी किरण राव खुश होतीं तो मैं भी खुश होने लगा। ये सभी मेरे जैसे थे। मैं बॉल दर बॉल मैच देखने के लिए विवश था। जैसे वे लोग अपने लाखों रुपये के स्टैंड छोड़ कर नहीं जा सकते थे वैसे ही मैं मित्रों के दबाव में उठकर नहीं जा सका। वैसे एक बार कमरे से निकल टहलने ज़रूर चला गया।

मैं हिंसक हो उठा। दसों उंगलियों के पोर पर पनपे नाखूनों को कतरने लगा। हर गेंद,हर विकेट के बाद कोई न कोई नाखून बिना आवाज़ किये दातों तले छिल जाता था। बेचैनियां बढ़तीं जा रही थीं। दोस्तों को एसएमएस करने लगा ताकि महफिल में बैठे खेलप्रेमी वीरपुरुषों और वीरांगनाओं से दूर जा सकूं। कपार के दोनों साइड बटन यानी टेम्पल पर कुछ महसूस हो रहा था। बेचैनी और नोचनी में फर्क मिट गया। धक-धक-धक। गो की बजाय स्टॉप हो जाता तो ग़ज़ब हो जाता। यही कहने लगा कि अब जो इस मैच को देख रहा है वह सही में खेल प्रेमी है। उसमें धीरज है कि वो हार या चुनौतीपूर्ण क्षणों में भी मैच देखे। मैं सिर्फ विजयी होने पर ताली बजाने वाला दर्शक हूं। ख़ैर मैच देखता गया। गंभीर और धोनी ने कमाल करना शुरू कर दिया। हर चौके पर तनाव काफूर होने लगा। रूह आफज़ा सी तरावट महसूस होने लगी।

जीत का क्षण नज़दीक आ गया। इतिहास बनने वाला था और मैं बिना विश्वविद्यालय के मान्यताप्राप्त इतिहासकार बनने जा रहा था। इस मैच को मैंने भी देखा है। बॉल दर बॉल। तनाव के बाद भी टिका रहा जैसी टिकी रही टीम इंडिया। पहली बार ख़ुद को असाधारण होने का अहसास हो रहा था। लगा कि तनाव झेल सकता हूं। बस एक बार टीम इंडिया की कप्तानी मिल जाए। कमज़ोर लोग ऐसे ही जीते हैं। एक-एक सीढ़ी चढ़ते हैं। घुलटते हैं फिर चढ़ जाते हैं। भारत के विश्वविजयी होते ही मैं धन्य हो गया। अपने डर,घबराहट और आशंकाओं में इतना डूब गया था कि जीतने के वक्त आंसू निकले ही नहीं। काश मैं सचिन की तरह रो पाता।

शाम की समाप्ति बेहद स्वादिष्ठ राजस्थानी व्यंजनों से हुई। सांगरी सब्ज़ी की ख़ूबियों पर थाणवी जी के अल्प-प्रवचन के साथ। हम सब अपने-अपने घर लौट आए। रास्ते में लोगों ने घेर लिया। एक ने कहा कार का शीशा नीचे कीजिए। बोला कि भाभी का ख्याल रखना और भर पेट खाना। टीम इंडिया जीती है। मीडिया वालों तुमको भी बधाई। तभी भीड़ में एक मीडिया वाला भाई आया। सर मैं फलाने टीवी में काम करता हूं। आपसे मिलूंगा। प्लीज़ सर। याद रखियेगा। मेरा नाम...। कोई बात नहीं हम भी यही करते थे। सोचा काश इंडिया के जीतते ही सबको पसंद की नौकरी मिल जाती,सैलरी मिल जाती। मुझे रवीश की रिपोर्ट का कोई नया आइडिया मिल जाता।

शनिवार की पूरी शाम मैंने समर्पित कर दी है। थाणवी जी की पत्नी के नाम। जिनकी मेहमाननवाज़ी की वजह से मेरे जैसा कमज़ोर इंसान मैच देख सका। वो तमाम क्षणों में सामान्य रहीं। थाणवी जी की चाय याद रहेगी। लिकर टी की वजह से रक्त पतला होता रहा और थक्के न जमने के कारण ह्रदयाघात की आशंका मिट गई। काश मैं भी मज़बूत और महान होता। ख़ैर। टीम इंडिया की जीत पर सबको बधाई। कस्बा की तरफ से।