तोषी का एक्जीबिशन
आज तोषी का ग्रुप एक्जीबिशन आरम्भ हो रहा है.आप मुंबई में रहते हैं तो ज़रूर पधारें. अरे हाँ तोषी का ही नाम विधा सौम्या है.
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अजय ब्रह्मात्मज.तोषी,
विधा सौम्या
पति ने जिंदा जला दिया और उसके सामने शराब पी कर जलते हुए का मुजरा देखे।
बेटियां जन्म लेती है तो प्यारी दिखती हैं। कईयों का दिल बाग बाग हो जाता है। और कई अपने किस्मत को रोते हैं। बेटियों के ब्लॉग में हम हमेशा अपने प्यार का इजहार करते आए हैं। पर आज मुझे सचमुच डर लग रहा है अपनी बेटियों के भविष्य को लेकर।
डर है तो समाज से, ना जाने कब वह बलात्कार की शिकार हो जाए या ना जाने कब उसे जला दिया जाए। छह महिने की लड़की के साथ भी बलात्कार हुआ है औऱ ना जाने कितने बुढी हो जाने तक उम्मीद बनी होती है। हमारा सभ्य समाज दानव बन चुका है।
मेरी एक परिचित को उसके पति ने जिंदा जला दिया और उसके सामने शराब पी कर जलते हुए का मुजरा देखे। सोच ही कितनी दर्दनाक है मन कांप उठता है और साथ ही साथ रो भी उठता है। सोचती हूं अगर मेरे साथ होता तो क्या होता मेरी बेटी के साथ होता तो क्या होता। वह भी किसी की बेटी थी, वह भी किसी की मां थी। पांच दिन से पटना में हॉस्पिटल में पड़ी है औऱ अभी भी नंगा नाच हो रहा है। पति खुलेआम हमदर्दी बटोर रहा है और अपने को बचाय हुए है पर आज सभी ज्वाला फट चुकी और उसने अपना बयान लिखवा दिया है। उस हॉस्पिटल में कुलर तक नहीं है। पता नहीं किस जन्म का भोग, भोग रही वह लड़की अभी तक जिंदा है और बयान अपने पति के खिलाफ नहीं देने का जैसे उसने प्रण कर लिया था। अभी भी भय ग्रस्त है या फिर किसी ने यूं डरा रखा था।
मां बाप कुछ नहीं कर पा रहे हैं। समझदारी की बात है कि नासमझी की मैं नहीं सोच पा रही हूं। शायद उस उम्र तक जाने के बाद मैं भी उनकी तरह सोचूं। उम्र के साथ ही समाज को समझने का नजरिया बदलता रहता है।
लड़कियां ही क्यों आग में झुलसाई जाती है लड़के क्यों नहीं। मेरी इच्छा होती है कि मैं भी उसके पति को यूं ही जला दूं सबके सामने औऱ देखुं कि कैसी तकलीफ होती है। यह तो मेरी परिचित है तो मैं परेशान हूं पर ना जाने कितनी लडकियां यूं ही जला दी गई है औऱ ना जाने औऱ कितनी जला दी जाएगी।
लड़कियां तभी जलाई जाती है जब वह पुरुष को चुनौती देती है। पुरुष का अहं ही सारे झगडों का जड़ होता है।
डर है तो समाज से, ना जाने कब वह बलात्कार की शिकार हो जाए या ना जाने कब उसे जला दिया जाए। छह महिने की लड़की के साथ भी बलात्कार हुआ है औऱ ना जाने कितने बुढी हो जाने तक उम्मीद बनी होती है। हमारा सभ्य समाज दानव बन चुका है।
मेरी एक परिचित को उसके पति ने जिंदा जला दिया और उसके सामने शराब पी कर जलते हुए का मुजरा देखे। सोच ही कितनी दर्दनाक है मन कांप उठता है और साथ ही साथ रो भी उठता है। सोचती हूं अगर मेरे साथ होता तो क्या होता मेरी बेटी के साथ होता तो क्या होता। वह भी किसी की बेटी थी, वह भी किसी की मां थी। पांच दिन से पटना में हॉस्पिटल में पड़ी है औऱ अभी भी नंगा नाच हो रहा है। पति खुलेआम हमदर्दी बटोर रहा है और अपने को बचाय हुए है पर आज सभी ज्वाला फट चुकी और उसने अपना बयान लिखवा दिया है। उस हॉस्पिटल में कुलर तक नहीं है। पता नहीं किस जन्म का भोग, भोग रही वह लड़की अभी तक जिंदा है और बयान अपने पति के खिलाफ नहीं देने का जैसे उसने प्रण कर लिया था। अभी भी भय ग्रस्त है या फिर किसी ने यूं डरा रखा था।
मां बाप कुछ नहीं कर पा रहे हैं। समझदारी की बात है कि नासमझी की मैं नहीं सोच पा रही हूं। शायद उस उम्र तक जाने के बाद मैं भी उनकी तरह सोचूं। उम्र के साथ ही समाज को समझने का नजरिया बदलता रहता है।
लड़कियां ही क्यों आग में झुलसाई जाती है लड़के क्यों नहीं। मेरी इच्छा होती है कि मैं भी उसके पति को यूं ही जला दूं सबके सामने औऱ देखुं कि कैसी तकलीफ होती है। यह तो मेरी परिचित है तो मैं परेशान हूं पर ना जाने कितनी लडकियां यूं ही जला दी गई है औऱ ना जाने औऱ कितनी जला दी जाएगी।
लड़कियां तभी जलाई जाती है जब वह पुरुष को चुनौती देती है। पुरुष का अहं ही सारे झगडों का जड़ होता है।
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