तोषी (विधा सौम्या) आजकल दिल्ली में है. दिल्ली की ठंढ उसे डरा रही थी. जाने से हिचक रही थी. खूब चाक चुबत हो कर, शॉल, जैकेट, स्वेटर के हथियारों से लैस जब वह दिल्ली पहुंची तो फूला गुब्बारा पिचक गया. मायूस हो गई वह- "अरे, यहां तो ठढ ही नहीं है. दिल्ली के लिए उसने लिखा अपने फेसबुक स्टेटस पर- "दिल्ली- इस मंगल शुरु, अगले मंगल खतम
दिल्ली- तेरी ठंढ में ठिठुरेंगे, नाक, कान, बदन और हम."
फेसबुक पर स्टेटस है तो कमेंट्स भी आयेंगे. पर सबसे बढिया कमेंट रहा उसके बडे पापा ऋषिकेश सुलभ जी का. कमेंट नहीं, कविता हो गई. यहां है-
दिल्ली-दिल्ली बेहिस दिल्ली....
दिल्ली हो गई बर्फ़ की सिल्ली...
कैसे खेलें डंडा-गिल्ली.....
मुम्बई है नज़र की झिल्ली.....
पलक झपकते नोचे बिल्ली.......
द्वार-द्वार पर लगी है किल्ली
पटना आओ मेरी लल्ली
हिंया उड़ी न तुम्हरी खिल्ली
देखे तुमको बरस हुए
जल्दी आओ मेरी लल्ली
राज़ की बात बताएं तुमको
ठंडी हो रही चिकन-चिल्ली
आओ-आओ मेरी लल्ली
पटना आओ मेरी लल्ली
हिंया उड़ी न तुम्हरी खिल्ली
देखे तुमको बरस हुए
जल्दी आओ मेरी लल्ली
राज़ की बात बताएं तुमको
ठंडी हो रही चिकन-चिल्ली
आओ-आओ मेरी लल्ली