कल तोषी सेलिब्रिटी बन गई लाहौर में
पेश है सुबह-सुबह तोषी की प्रदर्शनी पर छपी यह रपट:
Baji Nama tells a story on women's rights
Rabbia Arshad
LAHORE: A solo exhibition titled 'Baji Nama' by Vidha Saumya opened here by Safdar Aseff Ahmed Ali at the Niarang Art Gallery on Tuesday. Some 35 art pieces were put on display.Vidha Saumya is an Indian artist and came to Pakistan under the SAARC exchange programme. Talking to The Post, the artist said she had once been an admirer of a lady 'at my hostel. All my sketches are a tribute to her," she added.The exhibition revolves around the employment of a main theme, baji meaning elder sister. It is this character that inspires the artist wherein different postures, styles and gestures are drawn with poetic verses to add in detail to further illustrate the general idea.The medium used is pen alone on white paper to highlight the character. The work is said to be spell-bounding, to say the least.Scores of artists including Ambreen, Siama, Abid Khan, Michhoo, Shahid and Amad along with a good gathering of students all were present to view the work.Ambreen told The Post that the strokes and the lines 'are excellent, giving forth a strong effect.' "There is a story there. All packed in a serial form," she added while Abid Khan termed the work to be thought-provoking and centring on women's rights. He said the use of free hand technique paints a story of a woman entangled in typical cultural domestic troubles. The exhibition will continue till May 8.
बेटी हमारी
विजयशंकर चतुर्वेदी
मन ही मन हमने फोड़े थे पटाखे
बेटी, दुनिया में तुम्हारे स्वागत के लिए.
पर जीवन था घनघोर
उस पर दाम्पत्य जीवन कठोर.
फिर एक दिन भीड़ में खो गयीं तुम
ले गया तुम्हें कोई लकड़बग्घा
या उठा ले गए भेडिये.
लेकिन तुम हमारी जायी हो
कौन कहता है कि तुम परायी हो!
जब कभी खाता हूँ अच्छा खाना
तो हलक से नहीं उतरता कौर
किसी बच्चे को देता हूँ चाकलेट
तो कलेजा मुंह को आता है.
तुमने किससे मांगे होंगे गुब्बारे
किससे की होगी ज़िद
अपनी पसंदीदा चीजों के लिए
किसकी पीठ पर बैठ कर खिलखिलाई होगी तुम?
तुम्हें हंसते हुए देखे हो गए कई बरस
तुम्हारा वह पहली बार 'जण मण तण' गाना!
पहली बार पैरों पर खड़ा हो जाना!!
जब किसी को भेंट करता हूँ रंगबिरंगे कपड़े
तुम्हारे झबलों की याद आती है
जिनमें लगे होते थे चूं-चूं करते नन्हें खिलौने.
अब कौन झारता होगा तुम्हारी नज़र?
जो तुम्हें अक्सर ही लग जाती थी.
बाद में पता नहीं किसकी लगी ऐसी नज़र
कि पत्थर तक चटक गया.
अब तो बदल गयी होगी तुम्हारी भाँख भी.
हो सकता है मैं तुम्हें न पहचान पाऊँ तुम्हारी बोली से.
लेकिन पहचान जाऊंगा आँख के तिल से
जो तुम्हें मिला है तुम्हारी माँ से.
जब भी कभी मिलूंगा इस दुनिया में
मैं पहचान लूंगा तुम्हारे हाथों से
वे मैंने तुम्हें दिए हैं.
बोर हो रही हूँ....
पंचमी गोआ के रास्ते में कहीं
बोर हो रही हूँ...पता नहीं ये शब्द मेरी बेटी पंचमी के हैं या इस उम्र के सारे बच्चों का?....आजकल के बच्चे कार्टून नेटवर्क,पोगो या किसी चैनल पर चल रहे रीयलिटी शो,या घर में चल रही कोई भी फ़िल्म में तो बोर नहीं होते, ..पर इससे लग किसी भी जगह वो बोर होते हैं......इतवार को पंचमी की साईकिल, जिसकी हवा काफ़ी दिनों से निकली हुई थी...ठीक करवाया..थोड़ी देर चलाने के बाद फिर वही "बोर हो रही हूँ"........आखिर पूरे घर में एक ही तो बेटी है ...पर उसकी बोरियत को मैं कम से कम दूर नहीं कर पा रहा...असहाय महसूस कर रहा हूँ...
पंचमी
मेरे एक मित्र हैं परमानन्द मिश्र... वो हमेशा कहते हैं .... "बिमल बाबू एक और कै लेते तो का हुई जात?पंचमी पर कितना अन्याय कर रहे हैं आप लोग,अगर घर में अकेली रहेगी तो बोर तो होवे करेगी?..... आप कुछ नहीं कर सकते। अरे उसके साथ भी कोई खेलने वाला/वाली चाहिये?अब मिश्रा जी को क्या बताएं कि पंचमी का खिलौना तो अब हम ला भी नहीं सकते....ये हमारा फ़ैसला है..
तो मिश्राजी कहते हैं कि "कल को आपको कुछ हो हवा गया तो वो काम लड़की थोड़े ही करेगी"....मैने कहा तब की तब देखेंगे, पर अभी क्या किया जाय.....पंचमी की परीक्षा खत्म होते ही हम घूमने गोआ गए थे....कुछ समय मस्ती में काट कर हम वापस मुम्बई आ गए और फिर से पंचमी का...स्थाई स्वर "मैं बोर हो रही हूँ" सुन कर बड़ा अजीब सा लगता है..
पंचमी की कटहल के साथ एक तस्वीर
पंचमी भी तेज़ी से बढ़ रही हैं,खेलना,डांस करना ज़्यादा पसन्द है उसे.....पर अब एक मई को रिज़ल्ट आने वाला है....उसे तो धुकधुकी भी नहीं हो रही कि रिज़ल्ट आने वाला है..और हम माँ बाप उसके रिज़ल्ट को लेकर परेशान हैं....कैसे नम्बर आएंगे? रिज़ल्ट देने वाले दिन ,स्कूल में अभिभावकों को बुलाकर हाथ में रिज़ल्ट दिया जाता है,वहाँ ये बताया जाता है कि बच्चा कहां कहां कमज़ोर है....किन बातों का ध्यान रखें....पता नहीं बड़ी होकर क्या करेगी पंचमी....पर हम जो बड़े हो गये हैं उनका तो जीना दूभर हो गया है.... हमने तो कभी सोचा नहीं कि बड़े होकर क्या करेंगे? तो पंचमी के बारे में इतनी चिन्ता करने की क्या ज़रूरत है?
कोशी, किताब और कविता.
कोशी कि आजलक छुट्टियां चल रही हैं, १०वी के इम्तहान के बाद। इस समय का उपयोग वह किताबें पढ़ने मी कर रही है। घर के पास दो बुक स्टोर हैं, जिनमे वह जा रही है। इस बीच उसने एक कविता लिखी- अपने घर के ह्गामाले मी उसने चेरी के बीज बोए , मगर वहाअन सीताफल का पेर उगा और उसमे फल आ गया। इसी बात से प्रेरित होकर। उसने अपनी यह कविता पाने ब्लॉग jalpariyonkikavitayen.blogspot.com पर डाली हैं।
पुस्तकें हमारे जीवन का एक एअहम हिस्सा हुआ करता था। अब लगभग यह आदत छूट सी रही है। हमारे यहाँ इसका माहौल अभी तक है। इसका श्री अधिकतर अजय को जता है। कोशी आजकल अच्छी फिल्में भी देख रही है। अजय ने उसे एक तरह से जबरन 'सिटी ऑफ़ गोद 'दिखाई। पहले वह देखने को तैयार न थी। पर जब देखना शुरू किया टैब पूरी फ़िल्म देखने के बाद ही वह उठी।
उसकी यह छुट्टियां इन सबके बीच बीत रही है। इस क्रम मी वह धीरे धीरे खाना बनाना भी सीख रही हाय। उसकी समझदारी मी इजाफा हुआ हाय। एक दिन हम दोनों ही देर से आए, उसने अपने मन से सभी के लिए चिकन बना कर रखा था। बताया- 'सोचा, तुमलोगों को देर हगी, इसलिए बना दिया।' जिम्मेदारी का अहसास बेटियों को तुरंत हूने लगता है। कोशी भी इसका एक उदाहरण है। अभी वह बेहद खुश भी है, क्योंकि वह अभी लाहौर मी अपनी दीदी तोषी से मिलकर आई है, उसकी सहेली भूटान की चिमी से अपनी दोस्ती गाधी करके आई है।
आने दो बेटियों को धरती पर
ये तस्वीर कुसुम की है। कुसुम सुलभ इंटरनेशनल के स्कूल में सिलाई-कढ़ाई की छात्रा है। अभी अभी जो रविवार गुज़रा है, हम और रवीश वहां गये थे। सिर पर मैला ढोने वाली औरतों की बदली हुई जिंदगी की कहानी सुनने। और भी कई पत्रकार थे। ज़्यादातर अंग्रेज़ी के। सुलभ की रवायत ये है कि सुबह-सुबह सामूहिक प्रार्थना होती है। प्रार्थना गीत सुलभ के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने रचा है, आओ हम मिलजुल के बनाएं सुलभ सुखद संसार। प्रार्थना के बाद सुलभ से जुड़े कर्मियों में से कुछ लोग अपनी रचनाएं सुनाते हैं। कुसुम ने उस दिन ये कविता सुनायी। रवीश ने कहा, ये कविता बेटियों के ब्लॉग के लिए प्रासंगिक है। कविता पढने के बाद कुसुम भीड़ में गुम हो गयी - लेकिन रवीश ने उसे ढूंढ़ निकाला। हमने उसकी कविता अपनी डायरी में उतार ली... और वो अब यहां पेश कर रहे हैं।आने दो बेटियों को धरती पर
मत बजाना थाली चाहे
वरना कौन बजाएगा
थालियां कांसे की
अपने भाई-भतीजों के जन्म पर
आने दो बेटियों को धरती पर
मत गाना मंगलगीत चाहे
वरना कौन गाएगा गीत
अपने वीरों की शादी में
आने दो बेटियों को धरती पर
मत देना विश्वास उन्हें
वरना कैसे होंगे दर्ज अदालत में
घरेलू हिंसा के मामले
आने दो बेटियों को धरती पर
मत देना कोई आशीर्वाद उन्हें
वरना कौन देगा गालियां
मां-बहन के नाम पर
आने दो बेटियों को धरती पर
मत देना दान-दहेज उन्हें
वरना कैसे जलायी जाएंगी बेटियां
पराये लोगों के बीच
आने दो बेटियों को धरती पर
पनपने दो भ्रूण उनके
वरना कौन धारण करेगा
तुम्हारे बेटों के भ्रूण
अपनी कोख में।
तोषी की अगली प्रदर्शनी
अभी हमलोग सपरिवार लाहौर गए थे.वहाँ हमने तोषी उर्फ़ विधा सौम्या का रसूख देखा.हम बहुत खुश हुए .हम वहाँ थे तभी उसे पाकिस्तान की पंजाब सरकार से फ्रेश क्रीम नमक अवार्ड मिला.विधा सौम्या की पहली प्रदर्शनी 'लाहोरी बच्चे' सफल रही थी.उसकी अगली प्रदर्शनी का शीर्षक है' बाजी नामा'.मुझे पूरी उम्मीद है कि उसकी यह प्रदर्शनी पहली से ज्यादा कामयाब होगी.
एक से पांच तक: राग तिन्नी
तिन्नी का कबूतरनामा
बेटी पर पिता का साया
मालती सबला है, उसे उसके पिता ने सहारा दिया। वह अब निडर है, इतनी कि जेल में लोग ख़ास तौर पर मीडिया के पहुँचने पर सभी पाना चेहरा छुपाते हैं, उसने आगे बढाकर इन्टरव्यू दिया। जिस जेल के बारे में हमारे विचार कुछ बारे ऐसे-वैसे होते हैं, वहाँ उसे कैसा सहारा मिला, जो हमारे भ्रम को काफ्फी हद तक दूर कराने में sahaayak है। पिता के सहारे से आज वह अपनमज़बूत पाती है। माता- पिता का यह सहारा बेटियों के लिए वरदान है। आये, मालती की एक और कविता देखें-
सपना
कराग्रिः में जब रखा कदम
मेरी जिन्दगी हुई वीरान
वहाँ का माहौल देख हुई हैरान
पिताजी के पत्र द्वारा मिली प्रेरणा
कुछ भी हो, अब मुझे है संभालना
समय का सदुपयोग है करना
जीवन का महत्त्व है समझना
दिल में उठी आशा की किरण
आगे करना है शिक्षा ग्रहण
किया है मन ही मन मानना
सब दुखों का किया है हनन
नवजीवन मंडल ने बढाया हाथ
अधिकारियों ने दिया मेरा साथ
संकटों पर पाई है मैंने मात
दूर हुई मेरे जीवन की रात
शिक्सन का सपना था अधूरा
पूर्ण हुआ और आया सवेरा
देखते-देखते मेरा जीवन है खिला
कारागृह में रहते मुझे सब है मिला
यहाँ चिंता और चिंतन भी है
बस हर व्यक्ति पर निर्भर है
करना चाहो तो साधन भी है
कारागृह-कारागृह नहीं, सुधार-गृह भी है।
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दो बेटियाँ ये भी
माँ कि ममता (शीरीं)
माँ कि ममता कितनी प्यारी
सारी दुनिया से लगती न्यारी
माँ ने हमें जो प्यार दिया
दे ना सकेगी दुनिया सारी
माँ की ममता के आगे
सारी दुनिया हरदम हारी
माँ हमको जब दानत पिलाती
लगती टैब तो और भी प्यारी
माँ के एक आँचल के लिए
फिरती सारी दुनिया मारी
माँ हो हर पल साथ में जिसके
उसकी दुनिया सबसे न्यारी
माँ ने मुझको जन्म दिया
मैं हूँ उस माँ की आभारी
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माँ
ओ माँ, टोन अपना दूध पिलाया
अपने ही खून से मुझे सींचा
मेरा हाथ पकड़ चलाना सिखाया
हर संकट में तूने मुझे बचाया
ओ माँ, तुझे मेरा प्रणाम
तेरी जुदाईई ने मुझे किया अनाथ
दुनिया के तानों ने किया मेरा घाट
तेरे आँचल की छाया है मुझे याद
सदा मिलता रहे मुझे तेरा साथ
ओ माँ, तुझे मरता प्रणाम
तेरी याद जब मुझे आती
लगता एकांत ही है मेरा साथी
सारे रिश्ते -नाते हैं स्वार्थी
बस तेरा ही प्रेम है निस्वार्थी
ओ माँ, तुझे मेरा प्रणाम
काश माँ तू मेरे पास होती
तेरी ममता की छाँव मैं मैं सोती
जीने की आस मुझे होती
तेरे प्यार में मैं ख़ुद को खोती
ओ माँ, तुझे मेरा प्रणाम
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