आज मेरी तोषी का जन्म दिन है। यकीन नहीं होता की वह इतनी बड़ी हो गई है। केवल बड़ी ही नहीं, बेहद समझदार भी। उतनी ही संवेदनशील, उतनी ही सबके प्रति फिक्रमंद। अभी उसने अपने अनुभव के वितान को बड़ा करना चाहा है। इसके लिए उसने मुम्बई की एक आर्ट गैलरी ज्वायन की है। उसके अनुभव में इजाफा हो रहा है। अब वह स्वतन्त्र रूप से दुनिया को देखनेसमझाने, पहचानने की कोशिश में है। मुझे पूरा यकीन है की वह अपनी ख़ास जगह बना लेगी और ज़ल्दी ही। उसके जन्म दिन पर उसके लिए एक तोहफा-
जिस दिन तुमको ना देखूं मैं
मन जोर कहीं से कसकता है,
तेरी मुस्काती सूरत से
मन बहुत-बहुत ही हरासता है।
तुम अपनी बातों के गुच्छे से
खुशबू खूब बिखेरती हो
हो गई हो अब तुम बहुत बड़ी
पर फ़िर भी लगता नन्ही हो,
जैसे बरखा की धारा में
बून्दीन कोई मेंही हो
मेरे जीवन की रचना प्रथम
मेरी साँसों का तुम आधार
तुमसे पाई खुशियाँ सब
तुम ही अब जीवन अब संसार
छूटा है बहुत कुछ पाने में
छूटेगा बहुत कुछ पाने में
तुम साथ रहोगी, बनोगी बल
अफसोस न होगा जाने में
उनकी प्रतिमा, मेरी परछाईं
तेरा तो जीवन आगे है
थाम लो सूरज-चन्दा, तारे
बस तेरे लिए सब जागे हैं।