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मैं रवीश कुमार, मैं भी बेटियों के ब्‍लॉग का सदस्‍य हूं

यह ब्लाग बेटियों के पिताओं का ब्लाग है। आगे माताएं भी जुड़ने लगेंगी। लेकिन शुरुआत पिताओं से हो रही है। बेटियों के इस ब्‍लॉग क्लब में उन सबका स्वागत है, जिन्होंने दहेज नहीं लिया, भ्रूण हत्या में शामिल नहीं रहे और मानते रहे कि बेटियां बराबर की होती हैं। उनके लिए भी है, जो प्रायश्चित करना चाहते हैं। जो स्वीकार करना चाहते हैं कि अब वो बदल रहे हैं।

मेरी बेटी हर दिन मुझे बदल देती है। आज ही दफ्तर से लौटा तो स्वेटर का बटन बंद कर दिया। चार साल की तिन्नी ने कहा कि ठंड लग जाएगी। तुम्हारे एनडीटीवी में ठंड नहीं लगती। बाबा तुम एकदम पागल हो। बेटियों को ख्याल करना आ जाता है। बस हमलोग यानी पुरुष पिता उस ख्याल को अपने अधिकारों से नियंत्रित कर नियमित मज़दूरी में बदल देते हैं। तिन्नी हर काम करना चाहती है। अक्सर पूछती है तुम किचेन में क्यों नहीं जाते। तुम भात क्यों नहीं बनाते। मेरा किचेन में जाना न के बराबर होता है। पत्नी भी नहीं जाती। लेकिन उसे सब कुछ बनाना आता है। मुझे चाय बनानी आती है। जब काम करने के लिए कोई और नहीं था, तब बर्तन धो कर श्रमदान करता था। पोछा लगाता था। लेकिन किचन में काम करना ही पड़ता था। फिर भी खाना न बना पाने की इस एक कमज़ोरी और असमानता के अलावा हर काम में बराबर का बंटवारा होता है। नयना की इस आदत का असर तिन्नी पर भी हो गया है। नयना ने ही मुझे सिखाया कि काम दोनों बराबर करेंगे। फिर भी मेरे घर और शहर से बाहर होने के कारण उसे ही अधिक ज़िम्मेदारी उठानी पड़ती है। लेकिन वह बता देती है कि इसकी कीमत है। फ्री नहीं है।

नयना के कारण मैं बिहार के एक अर्धसामंती परिवेश में पला बढ़ा एक मर्द काफी बदला हूं। सोच से लेकर बोल तक में। भाषा में अनायास और स्वाभाविक रूप से आने वाले स्त्रीविरोधी शब्दों की पहचान उसी ने करायी। कहा कि देखो यह तुम्हारे भीतर का मर्द बोलता है।

बाकी का बदलाव तिन्नी ला रही है। छुट्टी के दिन तय करती है। कहती है आज बाबा खिलाएगा। बाबा घुमाएगा। बाबा होमवर्क कराएगा। मम्मी कुछ नहीं करेगी। मैं करने लगता हूं। वही सब करने लगता हूं जो तिन्नी कहती है। मैं बदलने लगता हूं। बेहतर होने लगता हूं। बेटियों के साथ दुनिया को देखिए अक्सर मन करता है इसे इस तरह बदल दें। इसके लिए खुद बदल जाएं। बेटियों का यह ब्लाग क्रांतिकारी क़दम है। मैं भी इसका सदस्य हूं।