मुंबई में आजकल किसी न किसी ऑटो के पीछे लिखा मिल जाता है, यह नारा- 'मुलगी शिकली प्रगति झाली,'' यानी बेटी की सीख, जग की प्रगति। बहुत गहरी लाइन है यह। पहले भी कहा जाता रहा है कि एक लड़की पढ़ गई तो समझो, तीन पीढियां पढ़ गईं। 'मुलगी शिकली प्रगति झाली ' में केवल उस लड़की की प्रगति की बात नहीं कही गई है, बल्कि उसके सीखने से सम्पूर्ण विश्व की प्रगति की बात कही गई है। एक और नारा दीखता है- "मुलगी शिकेल, सर्वाना शिकवेल', यानी बेटी सीखेगी, सबको सिखाएगी। बेटी अपनी हो या किसी और की, कम से कम उसकी पढाई में हम कहीं से योगदान कर सकें तो समझे, देश की प्रगति में हमने एक नन्हा सा योगदान कर दिया है। आज मेरी तोषी और कोशी दोनों पढ़ रही है, तो इसके साथ ही मुझे संतोष है कि अपनी संस्था 'अवितोको' के माध्यम से कुछ और बेटियाँ भी पढ़ रहीहैं। इनमें से एक है, नेहा। दूसरी कक्षा से वह हमारे साथ है। उसके पिता किसी प्राइवेट कम्पनी में चपरासी हैं और माँ मन्दिर में फूल बेचने का काम करती है। फ़िर भी अपनी बेटी को एक अच्छे पब्लिक स्कूल में पढाने का सपना रखे हुई है। आज नेहा ९वी में है। पढाई के प्रति गंभीर है और आगे भी पढ़ना चाहती है। मेरे घर में काम करती है- माला। वह अपनी दोनों बेटियों को पढा रही है। मैं उनकी पढाई में भी मददगार बन पा रही हूँ, यह मेरे लिए अपने सामाजिक दायित्व को पूरा करने के समान है, क्योंकि मैंने अपनी माँ को देखा था कि ससुराल में होने के बावजूद, सर पर पल्लू रख कर वे घर -घर घूम कर बेटियों को स्कूल भेजने का आवाहन करती रहती थीं। बेटियाँ आज अन्तरिक्ष पर हैं, मैनेजमेंट के उच्चतम पदों पर हैं। उनकी काबिलियत के पंख को मज़बूत करने और उनमें उड़ान भरने की ताक़त देने का काम हमारा है। ऑटो का संदेश 'मुलगी शिकली प्रगति झाली' हम सबके लिए है।
"बेटियाँ जन्मती हैं/ उग जाती हैं, घास-फूस सी/ बढ़ जाती हैं, खर -पतवार सी/बेटियाँ जन्मती हैं और थाम लेती हैं आकाश को अपनी हथेली / भर लेती हैं इन्द्र धनुष को अपने ह्रदय में। बेटियाँ कभी भी नहीं रोतीं अपना रोना, उनकी रुलाई में है जग का क्रंदन/ बेटियाँ हंसती हैं और हंसा जाती हैं सारीकायनात को। " आये, हम भी उनके साथ हँसे, उनकी शिक्षा- दीक्षा में शामिल हो कर और कहें ही नहीं, बल्कि कर के दिखाए कि हाँ सही में, - 'मुलगी शिकली प्रगति झाली'।
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