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अपने ही देश में सांस्कृतिक झटके झेल रही तोषी

कल तोषी लाहौर से लौट आई- दिल्ली। दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक आम औपचारिकता की ठस रुई मी सने स्वागत वचन से उसका भी स्वागत हुआ। आने से पहले कुछ तकनीकी कारणों से उअसके अन्य दोस्त नहीं आ सके। इससे वह दुखी तो थी ही। सारे समय विमान में बैठकर रोंती आई। दोस्तों, जगह, वहाँ के लोगों से बिछड़ने के गम के साथ- साथ अचानक घटी यह घटना। इमाग्रेशन चेक के बाद उसके पास फोन नईं रह गया था, वहां के लोकल फोन न होने के कारण। उसने एकदम से बाल हठ की कि अपने इन दोस्तों से बात किए बिना वह विमान में बैठेगी ही नही, और हैरानी भरी खुशी यह कि उसकी यह इच्छा पीआईए यानी पाकिस्तान इन्तारानैशानल एयर लीं के अधिकारियों ने पूरी की।
दिल्ली हवाई अड्डे पर भी उसकी यही पुकार रही कि मुझे दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर नहीं, लाहौर के अलामा इकबाल हवाई अड्डे पर उतरना है। यह एक सान्स्क्रिय्तिक मांग है। मुझे पता नहीं कि भारत का कोई हवाई अड्डा देश के किसी भी साहित्यकार के नाम पर हो। मफ्गर पाकिस्तान में ऐसा है।
दिल्ली में आने के बाद यहां के लोगों की बात-चीत के टोन से उसे लगात्तार झटके डर झटके लग रहे हैं। वह यही कहती फ़िर रही है कि "कर लेते हैं भैया, इसमें इतना चीखने की क्या ज़रूरत है। ज़रा प्यार से तो बोलो।" यह प्यार बाहरी बोली अब वह मिस कर रही है। वहाँ का ऍम आदमी भी अपने लहजे में पूरादाब व कायदे बरतता है। ऑटो, तैक्सीवाले, भी 'आयें,' बैठें, देखें, करें, बिटिया से संबोधित करता है। सबसे पहले शहर में घुसते ही उसके मुंह से निकला- "उफ़, कितनी गंदगी है?' मैं हंस पडी। अभी उसका मुम्बई आना बाक़ी ही है।
यह सब अपने देश को कमतर करके आंकने की कोअशिश नहीं है। यह चंद वे बातें हैं, जिनसे हमारा -आपका जीवन रोजाना प्रभावित होता है, फ़िर ये ही बातें हमारी आम आदतों में तब्दील हो जाती हैं। तोषी को फ़िर से यहाँ के जीवन के अनुसार ढलना होगा। मगर जहाँ कहीं भी उसे वहाँ की बेहतरी नज़र आयेगी, उसके मुंह से उफ़ तो निकलेगा ही- हमारी-आपकी तरह- सहज, सामान्य।

2 comments:

बालकिशन said...

"यह सब अपने देश को कमतर करके आंकने की कोअशिश नहीं है। यह चंद वे बातें हैं, जिनसे हमारा -आपका जीवन रोजाना प्रभावित होता है, फ़िर ये ही बातें हमारी आम आदतों में तब्दील हो जाती हैं।"
मैं आपसे शत-प्रतिशत सहमत हूँ.

Anonymous said...

भले ही यह बात लोगों को बुरी लगे पर स्वच्छता और सिविक सेंस के मामले में हम भारतीय दुनिया में सबसे गए बीते हैं. धार्मिक और सभ्य होने का ढोंग करते हैं, पर हैं सबसे बड़े पाखंडी. we ugly indians. कभी कभी तो शर्म आती है अपने भारतीय होने पर.