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आज मेरी मिठी का पहला जन्मदिन है


बेटियों के ब्लाग पर लिखे हुए मुझे लगभग साल भर होने जा रहा है. पीछले साल मैं अपनी बेटियों के विषय में लिखी थी. और आज पुन अपनी बेटियों के बारे में लिखने के लिए उत्सुक हूं. मन में तूफान उमड़ घुमड़ रहा है. यह तूफान पूरी तरह से खुशी की है और अपने को श्रेष्ठ समझने की.
मेरी बड़ी बेटी श्रुति के छह साल बाद मुझे दूसरी संतान सुख की प्राप्ती हुई. अति सुंदर, प्यारी, मोहक औऱ ना जाने शब्द ना खत्म होने वाली बिटिया की मैं मां बन गई। बिटिया के जन्म से घर में कहीं कोई अफसोस की लहर नहीं थी. कदाचित मन में हो रही तूफान को घर के लोग दबा रहें हो पर मुझ तक बात नहीं पहुंच पाती. यह मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे कहीं से ताने बाने सुनने को नहीं मिले.
दिन गुजरते रहे हांलाकि हमने उसके आने की खुशी में कोई पार्टी नहीं की पर हर दिन हमारे घर में उसके आने के बाद उत्सव सा माहोल बना रहा. हम दिन दूनी रात चौगुनी प्रगती करते रहे. सुख और शांति तो हमलोगों के मन में पहले से थी पर अब सुकून का एहसास भी होने लगा था. उसके पैर इतने अच्छे कि हमलोग अपने नए घर में शिफ्ट कर गए.
मेरे सपने थे कि मैं नए घर में अपनी बिटिया को लाल रंग के वॉकर पर घूमती देखूं. और यह भी सपना सच हो गया. वह ज्योंहि बैठने लगी हमलोग नये घर में आ गए थे.

उसकी प्यारी हंसी..... कुछ नहीं कह पाऊंगी.

नाम हमलोगों ने उसका घर पर मिठी रखा है. और बाहर का नाम अनुभूति.
नाम को लेकर काफी लोग उसे कुछ भी कहते हैं. एक तीखी और एक मिठी. सचमुच ऐसी ही है पर ऐसा कहना किसी को नहीं चाहिए. मेरी श्रुति को बुरा लगता है. श्रुति को पानीपत में उसका एक प्यारा सा दोस्त श्रुति प्रुति कहता था तो वह बहुत खुश होती थी. तो मेरी मिठी को खट्टी-मिठी, या मेथी या मिट्टी कहकर लोग प्यार से उसका नाम बिगाड़ते हैं. और वह बहुत शालीन है. जब से उसके पैर हुए हैं मतलब जब से वह चलना सीखी है बस चलती रहती है. दिनभर चलती रहेगी. औऱ कुछ कुछ सामान छुती रहेगी. बर्तन फैला कर खेलेगी, आलमारी से कपड़े निकाल कर इधर उधर बीखेरेगी, और ना जाने हमारा घर कई सामानों से बीखरा रहेगा. किसी की अगर चीज नहीं मिल रही हो तो सबका पहला शक मिठी पर ही जाता है. चार्जर कहां है भाई- तो पलंग के पीछे होगा, मिठी का पैंट नहीं मिल रहा वह भी पलंग के पीछे, सुबह का अखबार भी प्राय वहीं मिल जाएगा. मोबाइल बजता हो और कहीं ना मिले तो हमपहले पलंग के नीचे ही खोजते हैं.
उसे मैं कहीं ले जाती हूं तो मुझे बड़ा फक्र होता है. अब मुझे जाननेवाले कई लोग सोचेंगे कि क्या मैं अपनी बड़ी बेटी को भूल गई हूं. तो भाई कतई नहीं. मेरी दोनो बेटियां मेरी दो मजबूत बाजू है. मुझे दोनो पर बड़ा गर्व है. श्रुति काफी तेज है दिमाग से और काफी उर्जावान. मिठी गंभीर है और अभी उसकी तेजी का पता नहीं चला है. मैं वैसी मां नहीं हूं कि बच्चे ने सक्रूड्राइवर क्या घूमा दिया तो कहने लगे अरे मेरा बच्चा तो इंजिनीयर बनेगा. मेरी श्रुति पढ़ाई में ड़ांस में बोलने में तेज है.
श्रुति स्कूल जाते समय कहते हुए जाती है कि आज मैं तेरा नाम रौशन कर के आऊंगी. मतलब की स्कूल में प्रेयर के समय कोई भी मोरल स्टोरी सुना कर आऊंगी. मैं उसे मोरल स्टोरी याद करवाती हूं और वह पांच मिनट तक स्टोरी सुना कर आती है.
आज मेरी बिटिया का जन्मदिन है. वह पूरे साल भर की हो गई. प्यारी सी, खूबसुरत सी मेरी बेटी कुछ वर्षो में यूं ही बर्थडे मनाते हुए मुझ से दूर चली जाएगी. मुझे पता है ऐसा सब के साथ होता है। .....
सो इसलिए मैं आज का दिन भरपूर जीऊंगी. हर दिन उसका मेरे साथ किमती रहेगा. वह मेरे पास अपने व्यक्तिव विकास के लिए है उसके बाद तो उसे खुद ही अपना जीवन को मुकाम पर लाना है।

कोशी का बदलता स्वभाव

कोशी अब बड़ी हो रही है। अब उसे बड़ा होते देख मन करता है की वह फायर से नन्ही बच्ची बन जाए और हम सब उसके साथ फ़िर से खेलें। लेकिन कोशी इसके लिए राजी नही है। उसका कहना है की ऐसा होने से उसे फ़िर से नर्सरी से अबतक की पढाई पढ़नी पड़ेगी। उसकी बात में दम है। अब उसके काम में वज़न है। कल जब मैं दफ्तर से घर लौट रही थी तो उसने मुझे नीचे ही रुकने को कहा। नीचे आकर बोली की उसे बड़ी तेज़ भूख लगी है। वह नूडल्स खरी कर लाने लगी। लौटते में अचानक रुक कर कहने लगी की दीदी (तोषी) को भी भूख लगी होगी। उसके लिए भी ले लेते हैं। रात में आकर कहने लगी की पैसे दो, अम्मा की दवा ख़त्म हो गई है। दवा लाकर उसने ख़ुद ही उन्हें दवा दे दी। तीन दिन पहले वह अम्मा के लिए गाउन खरीद कर लाई। एक दिन ना पहनाने पर वह तनिक नाराज़ हो गई। दूसरे दिन पहना देने पर वह खुश हो गई। अब वह अपनी अम्मा से कहती है की अब आप सादी के बदले यही पहनिए। यही अच्छा लगता है। अपनी लाई हुई चीज़ के उपयोग से वह खुश है। उसकी जिम्मेदारियों का अहसास मन को अच्छा लगता है, मगर कभी-कभी लगता है की तोशी, कोशी दोनों फ़िर से बच्चे बन जायेम तो उनके साथ खेलने में कितना मज़ा आएगा!

तोषी व् कोशी का सेवा-भाव

आजकल तोषी व कोशी दोनों यहीं पर हैं, हमलोगों के साथ। हमारे सास-ससुर भी यहीं हैं। हर सरदी में हम उन्हें मुम्बई बुला लेते हैं, ताकि बिहार की कडाके की सरदी से वे बच सकें। वे नवम्बर से हमारे साथ हें। उनके आने से तोषी-कोशी दोनों ही बहुत खुशी महसूस करती हैं। ज़ाहिर है, हम सब भी।

इस बार नए साल की शुरुआत कुछ अच्छी नहीं रही। २६ दिसम्बर से ही अम्मा की तबीयत ख़राब हुई। कम्प्लीट बेड रेस्ट। उस पर से ५ जनवरी को वे गिर गई व् तबसे बिस्तर पर हैं। कहना न होगा की उनकी सेवा में ये दोनों बहनें जिस तरह से लगी हैं, उसे देखा कर मन बहुत गर्वित हो उठाता है। अम्मा को बिस्तर से उठाना, बिठाना, दवा, खाना आदि सारे भारी-भारी काम तोषी ने यूँ अपने ऊपर ले लिया, जैसे वह यह सब कराने की अभयस्त हो। एक कुशल नर्स की तरह वह अम्मा की सेवा में जुटी रहती है।

कोशी भी अपनी सामर्थ्य भर उनकी सेवा में लगी रहती है। अब अम्मा को दवा, खाना, फल, पानी आदि देने का काम वह बखूबी कर रही है। आज उसने कालेज जाने से मना कर दिया। कहा की परीक्षा के कारण क्लासेस नहीं हो रहे और घर में रहूंगी तो अमा और दीदी की जो भी ज़रूरत होगी, उसे देख लिया करूंगी। साथ में अपनी पढाई भी कर लूंगी। प्रसनागावश बता दूँ की इधर तोषी भी तीन-चार दिनों से बीमार पड़ गई है।

इन सबके साथ-साथ ये दोनों बाबा की भी सेवा में लगी रहती हैं। रोज रात में मच्छरदानी लगाना कोशी के जिम्मे है। अपने बड़ों के प्रति उनका यह सेवा भाव यह आश्वस्त करता है की बुजुर्गों को दरकिनार कराने के दिन अभी दूर हैं। तोषी-कोशी के भाव हमें अपने बड़ों के प्रति आदर व सम्मान देना बखूबी सिखा रहे हैं और खासकर उनके लिए, जो अपने ही घर के बड़े बुजुर्गों को बोझ मानने लगते हैं।