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मुझे साबित करने की जरुरत नहीं

अपने पिछले पोस्ट में , एक बेटी की मां का हलफनामा, आपकी खरी-खरी टिप्पणियां मिली थी, जिसे मैं उस वक्त पढ़ नहीं पाई थी।
अपने तय समय से तकरीबन १५ दिन पहले मुझे अस्पताल जाना पड़ा. रास्ते में भी क्या मैं तो ऑपरेशन थियेटर तक में, मेरे मन में यही दबी इच्छा थी कि मुझे बेटा ही होगा. बेटे से मुझे कतई प्यार नहीं है पर एक पल के लिए मैं चाहती थी कि कोई कहे तुम्हें बेटा हुआ है. बस इतनी ही देर के लिए मुझे बेटा चाहिए. जैसा कि मैं मानती हूं कि हर औरत अपनी कोख को साबित करने के लिए ही बच्चे जन्मती है. ठीक उसी तरह मैं भी अपने को सिर्फ साबित करने के लिए ही बेटा चाहती थी और यह भी चाहती थी कि वह बेटा फिर बेटी में बदल जाए.ऐसा संभव नहीं, यह हम आप जानते हैं पर सोच तो सोच है,
आपरेशन के दौरान गुजरने पर मन ड़रा हुआ था और कुछ सैकेंड के बाद ही मेरी डाक्टर ने जब बताया कि मुझे बिटिया हुई है और साथ ही उसकी रोने की दो हल्की सी आवाज जब मैंने सुनी तो मन झूम उठा. दो तीन मिनट बाद जब मैंने उसे देख- लाल रंग की गुडिया, टप टप बटन की तरह आंख खोले मुझे देख रही थी. और उसे फिर बाहर ले जाया गया. मैं बहुत खुश थी पता नहीं क्यों मुझे बेटे की याद भी नहीं आई. इतनी सुन्दर सी बेटी देख कर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह मेरी ही बेटी है. आपरेशन तो दस मिनट में ही खत्म हो गया और बच्चे को नरसरी में रख दिया गया. मेरे पति, मेरी सास व ननद उसे केवल पांच दस मिनट के लिए ही देख पाए थे. मैं बाहर निकल कर सब से यही पूछ रही थी कि बहुत सुन्दर थी ना. सभी बहुत खुश थे और मैं सबसे ज्यादा खुश थी पता नहीं क्यों मैं बहुत खुश थी. शायद मैंने उस एक पल को जीत लिया था, जब मैने एक पल के लिए लड़का नहीं होने का अफसोस अपनी बड़ी बेटी के वक्त महसूस किया था. मैने अपने पिछले हलफनामें में यह स्वीकार किया था कि मैं एक पल के लिए बेटा नहीं होने के कारण क्षुब्ध हुई थी और फिर कभी नहीं हुई थी. पर इस बार मैं कुंठा मुक्त हो कर उस पल को जीत ली थी. ( किसी टिप्पणी थी कि वाह क्या प्रगतिशीलता है) पर अब मैं यह अनुभव करती हूं कि सचमुच दूसरी बेटी क्या तीसरी बेटी को भी बेटे होने की तरह अनुभव करना प्रगतिशीलता है. ( हम क्यों बेटे की ही सिर्फ इच्छा रखते हैं क्यों नहीं बेटी की इच्छा रख सकते. क्या आपने कभी सुना है कि बेटे होने पर किसी ने उसे नमक चटा कर मार दिया हो.)

दो दिन तो मैं बहुत खुश होती रही. कितने फोन आते रहे और ना जाने कितने जाते रहे. कई बार मजा आता तो कई बार सामने वाले का उत्साह में कमी देख दुःखी हो जाती थी। मन नहीं करता कि किसी दूसरे को फोन कर के बताए. पर क्या करें समाजिकता थी, नहीं बताते तो लोग कहना शुरु करते कि अच्छा लड़की हुई इसलिए नहीं बताया. और अगर बताते तो वहां से एक जैसा नीरस जवाब , चलो कोई बात नहीं, अपना का ख्याल रखना. मुझे ये कोई बात नहीं सुनकर इतनी कोफ्त होती थी कि क्या बतांऊ. किसी ने यह कहने की कम से कम हिम्मत नहीं कि अगली बार बेटा ही होगा. अपनी खुशी कम होती जा रही थी, मैं महसूस करने लगी. और फिर मैंने फोन पर बात करना ही बंद कर दिया. फिर बात हुई बेटी के पैदा होने पर जश्न मनाने की। जश्न के तौर पर दावत (पार्टी) की बात मां ने उठाई क्यों कि हमारे घर के सारे बच्चों कि पार्टी हुई है तो इसकी कैसे नहीं होगी. पर मुझे लग रहा था कि पार्टी करना मतलब यह साबित करना कि मैं दूसरी बेटी होने पर भी खुश हूं. मैं खुश हूं इसे मुझे साबित करने की जरुरत नहीं है.

8 comments:

Admin said...

हम आपके साथ हैं..सत्य कभी नहीं छुपता

अबरार अहमद said...

बहुत अच्छा

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी said...

kash esa ho pato, hum betiyon ke janm ka jasn mana pate

Vibha Rani said...

man ke hhare hhar hai, man ke jhiite jiit. ham majboot hain to koii vazah nahi ki koii aur aakar hamaare ghar mein, hamaare man mein sendh lagaa jaye. bitiyaa hone par jo gham mante hain unase poochhein ki kya unaka janm sambhav tha? aakhir unakii maa bhi to kisi ki bitiya hi hai na!

Sanjay Mishra said...

"Mujhe sabit karne ki jarurat nahi" men ek maa ka beti ke prati pyar ke marmsparshi prastutikaran ka samarthan in panktiyon dwara karunga -
"Maa beti ko janam deti
Fir kyun log rote hai
Beti hi to maa ki
parchayi hoti hai
Angan main--------
Halke halke pavan
jab chalti hai
payal goonj uthati hai
Ek sankoon sa deti hai
Beti maa ki
parchhayi hoti hai"

Paruntu ek wakyansh "BETE SE MUJHE KATAI PYAAR NAHI HAI" kuchh yaksh-prashn khare kar diye :-
-- ki is pragatishil mansikta main do abodh bachchon (Bete aur Beti)ke prati chahat men phark Kyon? Kya ye rudhiwadi mansikta (Bete ki chahat)ki wiprit mansikta nahi jisme "Beta" ke hisse pyaar ka ek Tukra bhi nahi aata?

-- Ek tippani dekha -" maa bhi kisi ki beti hai". Usi andaz me kahna chahunga ki ek pyari si Bitia ke pita bhi to kisi Snehmai maa ka putra hai. Kahte hain ek beti ke liye sabse pyaara hai pita, ek patni ka aadarsh hai unka Pati- ye sabhi kisi mamtamai maa ke putra hi to hai

--Rahi baat sabit karne ki- toh ek bachche ke prati maa ke pyaar ko kisi bhi tarah sabit nahi kiya ja sakta hai.Yeh to sirph ek ehsas hai jise bachche hi mahsus kar sakte hai. Parantu ek bachche par auron ka bhi adhikar hai - maa ke baad pita, dada, dadi, nana, nani------. Yadi party ki ichha kisi ne wyakt kiya to main samajhata hun ki yeh unki khushi ka aaweg tha, na ki sawit karne ki ichha.

__ Meri Wyaktigat ichha hai - samaj Bete aur Betiyon men koi phark na kare, unhe saman roop se, ishwar ke prasad ki tarah apnae. Unmen Shiv aur Parvati ke roop ko mahsus kare.

Mera irada kisi ki bhi bhawnaon ko thesh pahunchane nahi hai. Phir bhi anjane me aisa ho gaya ho to chhama karenge. ye vichar ek sipahi type ka WYAKTIGAT VICHAR hai.

monika gunjan arya said...

apke aangan me ek aur kali khilne par meri taraf se bahut-bahut badhai. beti ki chahat ko mahsoos kar sakti hoon, kyonki maine bhi operation theatre me jaane ke baad bhi apne BABA se sirf beti ke liye dua ki thee, jo kabool bhi hui. apne ghar me ek chahakti-khanakti bitiya aakhir kise nahi chahiye? aap luckiest maaon me se hain jinki phulwari me do-do kaliyan hai. ek bar phir bahut-bahut badhai.

babita said...

बात यहाँ पर बेटा या बेटी की नहीं है. बच्चा तो बच्चा होता है. दोनों में से किसी में भी कोई फर्क नहीं है. लड़का हुआ तो भी पाँचों उँगलियाँ घी में और अगर बिटिया हुई तो भी दोनों हाथों में लड्डू होते हैं. कहने का मतलब ये है कि दोनों हे सूरत में मुनाफा ही होता है. इसलिए बेटा हो या बेटी दोनों कि परवरिश में कोई कमी नहीं होनो चाहिए

swati said...

beta ya beti khachon me bat kar nahi sanskaron me sinch kar pale jate hen. ab jamana gaya bete ka gorav karneka betiyan bhi kalpana ya sunita ya pallavi ya pratibha patil ho saktihe
s wati