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दो बेटियाँ ये भी

मालती और शीरीं, ये दो महिला कैदी हैं, अलग अलग जेलों मे, अपने -अपने अपराधों के लिए। अवितोको द्वारा जब हमने इनके लिए महिला कवि सम्मेलन का अयोअजन करवाया, टैब वहां के जेल बंदी भी हमारे साथ साथ कविता पढ़ते हैं। यह उनके विकास के लिए, अपनी भावाभिव्यक्ति के लिए है। बगैर उनके मन में झांके, हम अपनी बात उन्हें नही बताते। कवि सम्मेलन के दौरान मालती और शीरीं दोनों ने ही माँ के लिए अपनी कविता पढी। अबतक तो मैं केवल माँ की तरफ़ से लिखती रही। पर कहा ना, कभी बेटी बनाकर देखिए, कितना अच्छा लगता है। सो बेटी के रूप मी शीरीं और मालती यहाँ हैं-
माँ कि ममता (शीरीं)

माँ कि ममता कितनी प्यारी
सारी दुनिया से लगती न्यारी
माँ ने हमें जो प्यार दिया
दे ना सकेगी दुनिया सारी
माँ की ममता के आगे
सारी दुनिया हरदम हारी
माँ हमको जब दानत पिलाती
लगती टैब तो और भी प्यारी
माँ के एक आँचल के लिए
फिरती सारी दुनिया मारी
माँ हो हर पल साथ में जिसके
उसकी दुनिया सबसे न्यारी
माँ ने मुझको जन्म दिया
मैं हूँ उस माँ की आभारी
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माँ

ओ माँ, टोन अपना दूध पिलाया
अपने ही खून से मुझे सींचा
मेरा हाथ पकड़ चलाना सिखाया
हर संकट में तूने मुझे बचाया
ओ माँ, तुझे मेरा प्रणाम
तेरी जुदाईई ने मुझे किया अनाथ
दुनिया के तानों ने किया मेरा घाट
तेरे आँचल की छाया है मुझे याद
सदा मिलता रहे मुझे तेरा साथ
ओ माँ, तुझे मरता प्रणाम
तेरी याद जब मुझे आती
लगता एकांत ही है मेरा साथी
सारे रिश्ते -नाते हैं स्वार्थी
बस तेरा ही प्रेम है निस्वार्थी
ओ माँ, तुझे मेरा प्रणाम
काश माँ तू मेरे पास होती
तेरी ममता की छाँव मैं मैं सोती
जीने की आस मुझे होती
तेरे प्यार में मैं ख़ुद को खोती
ओ माँ, तुझे मेरा प्रणाम
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