अनंत तस्‍वीरें दृश्‍यावलियां ख़बर ब्‍लॉग्‍स

बेटी हमारी

विजयशंकर चतुर्वेदी

मन ही मन हमने फोड़े थे पटाखे
बेटी, दुनिया में तुम्हारे स्वागत के लिए.

पर जीवन था घनघोर
उस पर दाम्पत्य जीवन कठोर.

फिर एक दिन भीड़ में खो गयीं तुम
ले गया तुम्हें कोई लकड़बग्घा
या उठा ले गए भेडिये.
लेकिन तुम हमारी जायी हो
कौन कहता है कि तुम परायी हो!

जब कभी खाता हूँ अच्छा खाना
तो हलक से नहीं उतरता कौर
किसी बच्चे को देता हूँ चाकलेट
तो कलेजा मुंह को आता है.

तुमने किससे मांगे होंगे गुब्बारे
किससे की होगी ज़िद
अपनी पसंदीदा चीजों के लिए
किसकी पीठ पर बैठ कर खिलखिलाई होगी तुम?

तुम्हें हंसते हुए देखे हो गए कई बरस
तुम्हारा वह पहली बार 'जण मण तण' गाना!
पहली बार पैरों पर खड़ा हो जाना!!

जब किसी को भेंट करता हूँ रंगबिरंगे कपड़े
तुम्हारे झबलों की याद आती है
जिनमें लगे होते थे चूं-चूं करते नन्हें खिलौने.

अब कौन झारता होगा तुम्हारी नज़र?
जो तुम्हें अक्सर ही लग जाती थी.
बाद में पता नहीं किसकी लगी ऐसी नज़र
कि पत्थर तक चटक गया.

अब तो बदल गयी होगी तुम्हारी भाँख भी.
हो सकता है मैं तुम्हें न पहचान पाऊँ तुम्हारी बोली से.
लेकिन पहचान जाऊंगा आँख के तिल से
जो तुम्हें मिला है तुम्हारी माँ से.

जब भी कभी मिलूंगा इस दुनिया में
मैं पहचान लूंगा तुम्हारे हाथों से
वे मैंने तुम्हें दिए हैं.

7 comments:

Ghost Buster said...

लाजवाब.

pranava priyadarshee said...

शानदार. पहले अविनाशजी को बधाई और धन्यवाद. बेटियों के ब्लोग पर यह कविता उपलब्ध कराने के लिए. विजय तो अच्छी कवितायें लिखते ही हैं. पर इस कविता के लिए उन्हें भी खास तौर पर बधाई.

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया दिलचस्प

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर कविता है परन्तु सोचकर ही झुरझुरी हो आई ।
घुघूती बासूती

Unknown said...

apki kavita padhkar man khush hogay sir. or mujhe mery papa ki yad agi. es kavita ko padhte samay esa lag raha tha jaise mery papa mujhse keh rahe ho ki tumhary totle boli badal gai hogi. ab tum jo bolte ho sayad mai samjh na saku. mal bhi apne papa ke liye ek kavita likha rahi ho......
papa mery papa mai ho apki wahi choti. jisi apne ogli pakadkar chalna sikhaya ache bure ka gyan karaya. aj bhi ho nadan. koi boora bhala kehde to aj bhe ro ro kar apko karti ho yaad........

VIMAL VERMA said...

बहुत अच्छी कविता...

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

मेरी यह कविता ब्लॉग पर दिखाने के लिए अविनाश जी का धन्यवाद!

यह एक निजी कविता है लेकिन चूंकि बेटियों के ब्लॉग पर बहुत सारी आत्मीय चीज़ें आ रही हैं इसलिए यह कविता यहाँ पाकर मुझे बहुत सुकून मिला है. लगता है जैसे इतनी प्यारी-प्यारी बेटियों के बीच एक और बेटी जगह पा गयी है.

इस कविता के साथ आप सभी राय देने वालों का जुड़ाव महसूस करके द्रवित हो रहा हूँ. धन्यवाद!