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बेटी पर पिता का साया

मालती- एक महिला बंदी- कल उसकी एक कविता - माँ पर इसी ब्लॉग में डाली थी। शायद किसी को पसंद नही आई। लेकिन मालती या इस तरह की बेटियाँ किस हालत में जेल के सींखचों के पीछे पहुँचती हैं, यह जानना बेहद ज़रूरी है। जी हाँ, मालती ने अपने पति का खून किया था। भारतीय सन्दर्भ में 'भला है, बुरा है, मेरा पति मेरा देवता है' और यहाँ खून? मैंने उससे यही पूछा। पलटकर उसने मुझसे पूछा, 'दीदी, बताइये तो, हम औरतें किसी का खून क्यों करती हैं? क्या ऎसी बात है कि हम ऐसे मकाम तक पहुँचने को मज़बूर हो जाती हैं। हर लड़की शादी के समय एक सपना ओद्ती है, लेकिन उसके पीछे जब उसकी हँसी, उसका खुला व्यवहार और विचार शक के तराजू पर बिछाया जाने लगे, बात पीछे उसे ताने और मार-पीत से उसे निपटाया जाने लगे और उसके बाद उसके लिए हर समय उसकी सेवा में बिछे रहना पड़े, कोई कैसे और कितना बर्दाश्त करे? हाँ, हमें यह अक्ल नही आई कि हम उससे तलाक ले लेते या उसको छोड़ देते। टैब हमारे सामने बस यही रह गया था कि कैसे हम इससे छुटकारा पायें। हाँ, मैंने खून किया है, मगर मुझे इसका कोई मलाल नहीं है। मैं कान्हा चाहूंगी इस दुनिया के सभी पुरुषों से कि वे अपनी बीबी को प्यार करे, उसे शक की नज़र से ना देखे। शक सुई बनाकर जिगर में चुभती है और खंजर बन कर उसके पार उतर जाती है।
मालती सबला है, उसे उसके पिता ने सहारा दिया। वह अब निडर है, इतनी कि जेल में लोग ख़ास तौर पर मीडिया के पहुँचने पर सभी पाना चेहरा छुपाते हैं, उसने आगे बढाकर इन्टरव्यू दिया। जिस जेल के बारे में हमारे विचार कुछ बारे ऐसे-वैसे होते हैं, वहाँ उसे कैसा सहारा मिला, जो हमारे भ्रम को काफ्फी हद तक दूर कराने में sahaayak है। पिता के सहारे से आज वह अपनमज़बूत पाती है। माता- पिता का यह सहारा बेटियों के लिए वरदान है। आये, मालती की एक और कविता देखें-

सपना
कराग्रिः में जब रखा कदम
मेरी जिन्दगी हुई वीरान
वहाँ का माहौल देख हुई हैरान
पिताजी के पत्र द्वारा मिली प्रेरणा
कुछ भी हो, अब मुझे है संभालना
समय का सदुपयोग है करना
जीवन का महत्त्व है समझना
दिल में उठी आशा की किरण
आगे करना है शिक्षा ग्रहण
किया है मन ही मन मानना
सब दुखों का किया है हनन
नवजीवन मंडल ने बढाया हाथ
अधिकारियों ने दिया मेरा साथ
संकटों पर पाई है मैंने मात
दूर हुई मेरे जीवन की रात
शिक्सन का सपना था अधूरा
पूर्ण हुआ और आया सवेरा
देखते-देखते मेरा जीवन है खिला
कारागृह में रहते मुझे सब है मिला
यहाँ चिंता और चिंतन भी है
बस हर व्यक्ति पर निर्भर है
करना चाहो तो साधन भी है
कारागृह-कारागृह नहीं, सुधार-गृह भी है।
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1 comment:

Unknown said...

beti par pita ka saya pdhne ke baad ab mujhe yakin ho gaya hi ki betiyo ko maa se jiyda pita pyar karte hi or us mahila kiddi ne jo apne kavit pita duvra jo himmat badne ki baat likhi wo sacch hi papa hamesa apni bitiyo ko himmat badhte hi