तिन्नी का कबूतरनामा
तिन्नी आजकल कबूतरनामा गढ़ रही है। मेरी बालकनी पर कबूतरों का आना जाना लगा रहता है। उनके लिए दाना पानी भी वहां रख दिया जाता है। इन्हें देखते देखते तिन्नी बड़ी हो रही है। और जब वो खुद बोलने समझने की हालत में हुई तो कबूतरों से रिश्ता ही बना लिया। एक गमले के पीछे कबूतरी ने दो अंडे दिये। तिन्नी कई दिनों तक उनके लिए चावल के दो दाने फेंकती रही। अपना दूघ बाहर गिरा देती थी। ताकि बेबी पायरा ब्रेकफस्ट कर ले। बांगला में कबूतर को पायरा कहते हैं। एक दिन देखा कि वहां दो टूथब्रश और पेस्ट पड़े हुए थे। ज़ाहिर है तिन्नी के ही थे। मैंने पूछा तो कहा कि तुम बोका हो। बेबी पायरा ब्रश नहीं करेगी तो उसका दांत खराब हो जाएगा। उसकी मम्मी उसे डांटेगी। जब तब वो बालकनी में जाकर कबूतरों को बुलाने लगती है, उनसे मम्मी की तरह बात करने लगती है। आज उसने कहा कि पापा मॉल चलो। मैं पूछा तो बताया कि बेबी पायरा के लिए स्वेटर और तकिया खरीदना है। उसके पास तकिया नहीं है। तिन्नी को लगता है कि जो उसे चाहिए वही बाल कबूतरों को भी चाहिए। तरह तरह के संवाद चलते रहते हैं। वो अपने घर, मन सबकी बात इन आते जाते बेपरवाह कबूतरों से करती रहती है। लंबी लंबी बातें।
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3 comments:
इतना नेह पाके पायरिया पगलाय गयी तब? तिन्निया इसका सोची है?
कहां सर जाति के लफ़डॊ में हम फ़ंसे थे तिननी की कहानी मूड हरा कर देती है.बाल गंभीर साहित्य आज बाज़ारवाद में सनकी टाइप का हो गया है. बच्चे रचनात्मकता और संवेदनशील साहित्य के बजय विभत्स रस क स्वादन कर रहे है. सर्वेश्वर दयाल स़कसेना जैसे लोगों का अभाव है . बेबी पायरा सुंदर लगी.
namaskar sir,
aksar hi apki naisadak aur betiyo ke blog ko padhti hu , per aj pehli baar comment likh rahihu. aapne baby payara aur tinni ke bandhan ko itne saral tarike se vyakt kiya ki, aisa laga ki khoye bachpan ko wapas pane ka ehsas ho gaya. wakai, betiyo ke blog kop padh ker apne aap ko har baar apne pita ji ke aur bhi kareeb pati hu. sukun dene ke liye aur bachpan tarotaja karne ke liye dhanyawad. apse u hi nichal lekhni ki darkaar hai.
sammman sahit
garima( hamaramedia.blogspot.com)
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