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कोशी की सफलता और उसकी संवेदनशीलता

हमारी आशा के विअपरीत कोश्य्य १०वी के इम्तहान में ७६% अंक लाई। उसके खिलानादाद स्वभाव ने मुझे बहुत दारा रखा था। उसकी यह अप्रत्याशित सफलता हम सभी को अभिभूत कर गई। कहने को आज के अंक आधारित जगत में ७६% का कोई महत्त्व नही, मगर हमने कभी भी अपने बच्चों को अंकों की होड़ में जाने देना नही चाहा। बस यह चाहा की वे आगे बढें, कुछ करे, और इसके लिए पढाई ज़रूरी है, सो वे पढ़े। तोषी ने तो ख़ुद को बेहद अच्छे से स्थापित कर लिया है, अब कोशी के सेटल होने की बात है।
उसकी सफलता के साथ-साथ उसकी संवेदनशीलता भी गौर कराने वाली है। नौन्वेज खाने में उसकी जान बसती है। यह गुन बच्चों में अजय से आया है। लेकिन कल जब घर में मछली बनी, तो कोशी ने खाने से इनकार कर दिया। पूछने पर बताया की बारिश में मछली नही कहानी चाहिए, क्योंकि यह उसके ब्रीडिंग का समय होता है। एक मछली को खा जाने से न जाने कितनी मछलियों को संसार में आने से हम रोक देते हैं।
समय-समय पर इस तरह की कई बातें हामी चुंका देती हैं। मुझे लगाने लगता है की अब वह बड़ी हो गई है और समझदार भी। संवेदना आगे भी उसकी बनी रहे, उसकी ही नहीं, बल्कि सभी की बनी रहे, यह कामना है।

1 comment:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

'बारिश में मछली नहीं खाना चाहिए, क्योंकि यह उसके ब्रीडिंग (प्रजनन) का समय होता है। एक मछली खाकर हम न जाने कितनी मछलियाँ संसार में आने से रोक देते हैं।'
वाह-वाह! इसे कहते हैं संवेदनशीलता. दोनों बेटियों को ढेर सारा प्यार और उनके उज्जवल भविष्य के लिए अनेकानेक शुभकामनाएं!