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बिल्ली, उसके बच्चे और तोषी, कोशी

कल अचानक तोषी ने बताया कि बिल्डिंग की सीढ़ी के कोने पर बिल्ली ने बच्चे दिए हैं। फ़िर कोशी ने भी बताया और कहा, चलो देखने। देखा, पूरे मातृत्व भाव में पगी हुई बिल्ली। चार बच्चे उसने दिए थे। चारो माँ के दूध में मुह घुसाए पड़े थे और माता राम आराम से बेफिक्र हो कर बच्चों को लिपटाए हुई थीं। बचपन में माँ कहती थी कि बिल्ली अपने बच्चे को मुंह से पकड़ सात घर घुमाती है। कई बार इस दृश्य को देखा भी था। अब ऐसा है या नहीं, पता नहीं। लेकिन कोशी उसकी फ़िक्र में लगी रहती है। अभी वह १५ अगस्त के कार्यक्रम के लिए डांस का अभ्यास कर रही है। लौटते में सीदी से आई या लिफ्ट से, यह तो मालूम नहीं, मगर आकर कहने लगी, "बिल्ली के लिए कुछ खाना है? उसका खाना ख़तम हो गया है।" मिट्टी का एक बर्तन उसके हाथ में था। उसके लिए वह दूध -रोटी लेकर गई। जानवरों और बच्चों से उसे कुछ ज़्यादा ही लगाव है। अभी बच्चों के रोएँ आने शुरू हो रहे हैं। अभी उसके रोजा दिन के किस्से शुरू होंगे-बिल्ली व् उसके बच्चों को लेकर। मैंने देखा है, जिन बच्चों का घरेलू जानवरों के साथ लगाव रहता है, उनमें बहुत सी परिपक्वाताएं आती हैं, समझदारी व् संवेदनशीलता अधिक होती है। अपनी दिक्कतों के कारण हम जानवर तो नहीं पाल सके। तोषी भी बचपन में इसके लिए काफी इसरार करती रही थी। हालात ने हमें इसकी इजाज़त नहीं दी, मगर जैसे हमने कभी भी इन्हें दूसरी माताओं की तरह मिट्टी पर, मिट्टी से खेलने से रोका नहीं, उसी तरह कभी जानवरों के साथ दोस्ती करने से भी नहीं रोका। आज दोनों ही अपनी अपनी जगह इतनी संवेदनशील हैं। इसका कुछ तो श्रेय इन मूक जानवरों को तो देना ही होगा।

2 comments:

pallavi trivedi said...

sahi kaha aapne...ye mook jaanvar hame bahut kuch sikhaate hain.

हर्ष प्रसाद said...

aaj maine bhee dekha woh khoobsoorat nazara. char bacchon ko poshit karti ek ma. Lekin kya aap logon ne aise baap naheen dekhe? aaye din Discovery ya NGC mein inka byora aataa rehtaa hai.