ये तस्वीर कुसुम की है। कुसुम सुलभ इंटरनेशनल के स्कूल में सिलाई-कढ़ाई की छात्रा है। अभी अभी जो रविवार गुज़रा है, हम और रवीश वहां गये थे। सिर पर मैला ढोने वाली औरतों की बदली हुई जिंदगी की कहानी सुनने। और भी कई पत्रकार थे। ज़्यादातर अंग्रेज़ी के। सुलभ की रवायत ये है कि सुबह-सुबह सामूहिक प्रार्थना होती है। प्रार्थना गीत सुलभ के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने रचा है, आओ हम मिलजुल के बनाएं सुलभ सुखद संसार। प्रार्थना के बाद सुलभ से जुड़े कर्मियों में से कुछ लोग अपनी रचनाएं सुनाते हैं। कुसुम ने उस दिन ये कविता सुनायी। रवीश ने कहा, ये कविता बेटियों के ब्लॉग के लिए प्रासंगिक है। कविता पढने के बाद कुसुम भीड़ में गुम हो गयी - लेकिन रवीश ने उसे ढूंढ़ निकाला। हमने उसकी कविता अपनी डायरी में उतार ली... और वो अब यहां पेश कर रहे हैं।आने दो बेटियों को धरती पर
मत बजाना थाली चाहे
वरना कौन बजाएगा
थालियां कांसे की
अपने भाई-भतीजों के जन्म पर
आने दो बेटियों को धरती पर
मत गाना मंगलगीत चाहे
वरना कौन गाएगा गीत
अपने वीरों की शादी में
आने दो बेटियों को धरती पर
मत देना विश्वास उन्हें
वरना कैसे होंगे दर्ज अदालत में
घरेलू हिंसा के मामले
आने दो बेटियों को धरती पर
मत देना कोई आशीर्वाद उन्हें
वरना कौन देगा गालियां
मां-बहन के नाम पर
आने दो बेटियों को धरती पर
मत देना दान-दहेज उन्हें
वरना कैसे जलायी जाएंगी बेटियां
पराये लोगों के बीच
आने दो बेटियों को धरती पर
पनपने दो भ्रूण उनके
वरना कौन धारण करेगा
तुम्हारे बेटों के भ्रूण
अपनी कोख में।
आने दो बेटियों को धरती पर
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4 comments:
aane betiyo ko dharti pe warna kon dharan karega unka bhron ati sundar.ekdam such par kab samjhega ye samaaj.pahli baar blog par aai bahut hi accha lagaa. aati rahungi.
kamlabhandari.blogspot.com
बहुत सुंदर...एक हसरत सी छिपी है इस में...
अविनाशजी,आपका शुक्रिया और रवीश जी का भी की इतनी सार्थक कविता आप चुन के लाए..बहुत ही गहरी....कुसुम को मेरा सलाम ।
Bahut accha likha Kusum, hum tak pahuchale ke liye thanks.
Abhi tak padhti thi, ab hissa le rahi hoon.
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