कोशी कि आजलक छुट्टियां चल रही हैं, १०वी के इम्तहान के बाद। इस समय का उपयोग वह किताबें पढ़ने मी कर रही है। घर के पास दो बुक स्टोर हैं, जिनमे वह जा रही है। इस बीच उसने एक कविता लिखी- अपने घर के ह्गामाले मी उसने चेरी के बीज बोए , मगर वहाअन सीताफल का पेर उगा और उसमे फल आ गया। इसी बात से प्रेरित होकर। उसने अपनी यह कविता पाने ब्लॉग jalpariyonkikavitayen.blogspot.com पर डाली हैं।
पुस्तकें हमारे जीवन का एक एअहम हिस्सा हुआ करता था। अब लगभग यह आदत छूट सी रही है। हमारे यहाँ इसका माहौल अभी तक है। इसका श्री अधिकतर अजय को जता है। कोशी आजकल अच्छी फिल्में भी देख रही है। अजय ने उसे एक तरह से जबरन 'सिटी ऑफ़ गोद 'दिखाई। पहले वह देखने को तैयार न थी। पर जब देखना शुरू किया टैब पूरी फ़िल्म देखने के बाद ही वह उठी।
उसकी यह छुट्टियां इन सबके बीच बीत रही है। इस क्रम मी वह धीरे धीरे खाना बनाना भी सीख रही हाय। उसकी समझदारी मी इजाफा हुआ हाय। एक दिन हम दोनों ही देर से आए, उसने अपने मन से सभी के लिए चिकन बना कर रखा था। बताया- 'सोचा, तुमलोगों को देर हगी, इसलिए बना दिया।' जिम्मेदारी का अहसास बेटियों को तुरंत हूने लगता है। कोशी भी इसका एक उदाहरण है। अभी वह बेहद खुश भी है, क्योंकि वह अभी लाहौर मी अपनी दीदी तोषी से मिलकर आई है, उसकी सहेली भूटान की चिमी से अपनी दोस्ती गाधी करके आई है।
2 comments:
अब कोशी कालेज जाएगी तो यह सब तैयारी करना भी जरूरी है ,मेरा आशीष कोशी को कहिए -अच्छी बच्ची....
zaroor. aap sabka aashish use chahiye hi.
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