तोषी लौट आई है और इन दिनों अपनी लाहौर परियोजना पर काम कर रही है ।प्रस्तुत है उसका लिखा एक शब्द चित्र लाहौर के बारे में ...
नीले रंगबिरंगे रिक्शे
उनमें बैठे सलवार कमीज पहने ड्राईवर
आँखों के इशारे से रिक्शा रोकना
उचक कर तंग रिक्शों में
बैठना चाचा से पैसे तय करना
पर्देदार रिक्शों में महफूज़ महसूस करना
टूटे धूमिल आईनों में अपना हुलिया संवारना
रिक्शेवालों से गुफ़तगू
अपनापन सा लगना
इंडिया की बातें
उनकी आंखों का चमकना
उनकी आवाज़ की उठान
मंजिल पहुँचते-पहुँचते दोस्ती हो जाना
शुक्रिया मेहरबानी का छिडकाव
ये सब तो याद आएगा ही
भूलेगा नहीं उतारते वक्त कुरते का कील पर अटक कर फट जाना
मौसम का बदलना
बसंत के रंगबिरंगे फूल
आतिशी रंगत
यूँ लगता हो जैसे बस आप ही के लिए खिले हैं ये फूल
जैसे मौसम खेल रहा हो होली
सुर्ख गुलाबी चेहरे
झुर्रियों में भी चमक
ऊंची पायंचों वाली सलवार
ऊंची चानकों से झांकती बालाओं की कमर
गोरी चिट्टी ...आटे की लोई
मैचिंग मैचिंग का अंदाज़
लांडा कैसे घूमूंगी अब
परांदे वाली चप्पलें भी कुछ सालों में घिस ही जायेंगी
चाचा चाचा के नारे कौन लगायेगा
आते जाते बाजी कौन बुलाएगा
बिंदी लगाकर कहाँ इतराऊंगी
मैं साड़ी पहन किसे कमर दिखाऊंगी मैं
कहाँ लगेगा अब कुछ भी खास
धूल भी तो नहीं होगी तेरी मेरे पैरों के पास
आँखों ही आँखों में से इशारे करूंगी अब
माशाल्लाह की छेड़खानी कौन करेगा अब
इतने सारे हरे रंग कहाँ नज़र आयेंगे मुझे
साफ़ सड़कों पर पानी कैसे देखूँगी
इंडिया से आती नहर का भी नज़ारा नहीं होगा अब
कुछ तो हमेश जुड़ा है
ये दिलासा कौन देगा अब
इंडिया से आए मेहमान को देख
चमकती आंखों का नज़ारा न होगा अब
टूटे फूटे सवालों का जवाब कैसे दे सकूंगी अब
इंडिया की तारीफ किस से करूंगी अब
अपने मुल्क के बारे में सब नायाब कैसे लगेगा अब
गंदे नाले के पास से गुजरने पर
बॉम्बे कैसे याद आएगा अब
लेस गोटे का फैशन कैसे दिखेगा अब
ऊंची सलवारों का नज़ारा भी न होगा अब
ऊंची सलवार पहनना कितना अटपटा लगेगा अब
कैसे पियूंगी बोतल हर दुकान पर
चाय बोतल का कौन पूछेगा अब
फ़ोन रिसीव करके सिर्फ़ हेल्लो बोलेंगे अब लोग
सलाम वाले कुम बहुत याद आएगा अब
मुर्गियों की दावत बहुत खास लगेगी अब
कोक भी ठंडी नहीं ठंडा होगा अब
शोएब की जगह आमिर पिलायेंगे उसे अब
बिरयानी आम न होगी अब
खोसों की कतारें कहाँ दिखेंगी अब
पठानों के बच्चे कहाँ दिखेंगे अब पंजाबी,पश्तो कहाँ सुनूंगी अब
टूटी उर्दू कैसे सुनूंगी अब
कोरोला बीटले वाली सड़कें नजर आएंगी कहाँ
चौडी सड़कें बस ख्वाब में नजर आएंगी अब
हरियाली ही हरियाली नजर आएगी कहाँ
हवाई जहाज सी गाड़ी में केसे बैठूंगी अब
पूरी रात तेरी खूबसूरती कैसे निहारूंगी मैं
एक बजे चमन में नारंगी पिस्ता बादल आइसक्रीम कैसे खाऊगी अब मैं?
पाइन, गोल्डलीफ नहीं होगी वहां
विल्स लाइट से ही काम चलाना पड़ेगा
20 का कौन सा पैकेट मिलता है
फिर से ढूंढना पड़ेगा
रानी मुखर्जी की लाइट मारने लाइटर भी नहीं होंगे वहां
सुर्ख लाल रंग के नाखून कैसे नजर आयेंगे
लंबे लंबे नाखूनों से मुलाकात नहीं होगी
नक्काशीदार सैंडलों से झांकते खूबसूरत पैर भी नहीं होंगे कहीं
हर लिबास से मिलती चप्पलें कैसे मिल जाती हैं इन्हें?
ये हैरत भी नहीं होगी अब
बाहर का देख कौन रेट बढाएगा
इंडिया की जान रेट कम भी कैसे हो जाएगा
इत्मिनान से बातें कैसे होंगी
तेज धूप में सोना, कैसे लगेगी तेरी धूल
पैरों पर प्यार से कैसे लिपटेगी ये धूल
काश कि पैरों के भीतर घुस जाती ये धूल
अनारकली की चुलबुलाहट याद आएगी बहुत
माल रोड का शोर नहीं भूलेगा अब
साफ उदास जेल रोड भी प्यारा ही लगेगा अब
कैवलरी की पहचानी हुई गलियां भी गैर हो जाएंगी अब
बेस्ट बाई घर जैसा नहीं लगेगा अब
पेस पड़ोस में नहीं होगा अब
हर इतवार कैदी का रूटीन नाश्ता
तेलदार भटूरे नहीं पूरियां
निहारी की खुशबू
हल्का नारंगी मीठा हलवा
आहा।। कितना याद आएगा पूरी साथ हलवा खाना
छाती लस्सी की चटखार भी न भूल जाए
लिबर्टी की रंगीन दुकानें
दुपट्टा गली का शोर
चाय बनाते पेशावर के बच्चे
रंगरेजों की मटमैली उंगलियां
नायाब तरीकों से कपड़े सुखाना
रंग का नापा औला हिसाब
बंधनियों का ढेर
तीन बजे रात का उदास पान
फिर भी उसे खा लेने की खुशी
आधी रात पान वाले गाने गुनगुनाना
हैरत से देखती आंखें हर तरफ आशिकों का नजारा
महंगे दाम में कैमल खरीदना
आपके रूक कर कुछ पूछने पर
पूरी दुनिया का थम जाना
मदद करने की चाह
अच्छे खराब खयालात
हर भद्दी बात की अदा
हर एक घंटे पर गर्मी और अंधेरे से तरबतर होना
लो क्वालिटी मोमबित्तयों की शौपिंग
माचिसों का खोना
हर दूसरे दिन रंगबिरंगे लाइटर खरीदना
चीनी मिट्टी के अनोखे प्याले
हरी केतलियाँ
कांजी आंखों के चायवाले
पकी हुई चाय
156- जी का खुला माहौल
घर का रास्ता याद करना
वहाँ से न निकलने की चाह
मादाम हाशमी का प्यारा सा आलिंगन
राशिद बशीर से बस की टाइमिंग सेट करना
ओएतोवाले से कम होते रेट
अंबर रंग का गोलगप्पे का पानी
हर फूटा गोलगप्पा
गिन चुने चने के दाने
25 रुपए प्लेट
12 फूटी पूरियां
अनारकली के गेट पर आइस सेवर
सतरंगी चाशानियाँ
पान चबाते मुस्टंडे
मूंछों की ताव
अआधी रात के रिक्शे
टूटे फूटे ग़मगीन
कतार पटर की आवाज़
खरोंचते नोचते टीन के टुकडे
पती हुई सी सीट
80 की स्पीड का रोमांच
उछल उछल कर रिक्शे का चलना
सरों पर लगती चोट
सलियों पर उलझते बाल
नारंगी अमरूद का बगान
स्ट्रोबेरी के खोमचे
फालसे पर फैले गोंद के निशान
जामुनों की चमक
आड़ू के मखमली खोल
मंहगे केले
काली चेरी से जड़े पेपर के डब्बे
फालसे का ठंडा खट्टा जूस
आनार के ज्यूस में इस्मत के अफसानों की यादें
http://www.vidhaatwork.blogspot.com/
6 comments:
wow toshi...achchha shabd chitra likh diya tumane. lekhakon ki beti ho...uma ne bhi padha...wah bola.
उमा आंटी ने बोला-
तोशी ने जिस तरह की भाषा लिखा है उसमे जबरदस्त खुशबु है लाहौर की
हम सबको तुम पर गर्व है तोशी !
कविता से हमने भी लाहौर देख लिया. छोटे छोटे हाथों की बड़ी सी रचना संकेत है कल के एक बड़े हस्ताक्षर का. मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ! तुम्हारा यह सफर तुमने ऊँचे और बहुत ऊँचे तक ले जाए.
बधाई तोशी............आपके अफ़सोस में हमने भी लाहौर देख लिया.............
अहा हा बिटिया, अब सचमुच तुम मुझसे बड़ी कवि हो. तुम्हारा अंदाज़-ए-बयां, जीवन का सूक्ष्म सर्वेक्षण और कविता की फ़िक्र (content); सब बड़ा है. और पढ़ो तो ज्यादा निखार आएगा. इस अद्भुत कविता के लिए बधाई!
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