यह ब्लाग बेटियों के पिताओं का ब्लाग है। आगे माताएं भी जुड़ने लगेंगी। लेकिन शुरुआत पिताओं से हो रही है। बेटियों के इस ब्लॉग क्लब में उन सबका स्वागत है, जिन्होंने दहेज नहीं लिया, भ्रूण हत्या में शामिल नहीं रहे और मानते रहे कि बेटियां बराबर की होती हैं। उनके लिए भी है, जो प्रायश्चित करना चाहते हैं। जो स्वीकार करना चाहते हैं कि अब वो बदल रहे हैं।
मेरी बेटी हर दिन मुझे बदल देती है। आज ही दफ्तर से लौटा तो स्वेटर का बटन बंद कर दिया। चार साल की तिन्नी ने कहा कि ठंड लग जाएगी। तुम्हारे एनडीटीवी में ठंड नहीं लगती। बाबा तुम एकदम पागल हो। बेटियों को ख्याल करना आ जाता है। बस हमलोग यानी पुरुष पिता उस ख्याल को अपने अधिकारों से नियंत्रित कर नियमित मज़दूरी में बदल देते हैं। तिन्नी हर काम करना चाहती है। अक्सर पूछती है तुम किचेन में क्यों नहीं जाते। तुम भात क्यों नहीं बनाते। मेरा किचेन में जाना न के बराबर होता है। पत्नी भी नहीं जाती। लेकिन उसे सब कुछ बनाना आता है। मुझे चाय बनानी आती है। जब काम करने के लिए कोई और नहीं था, तब बर्तन धो कर श्रमदान करता था। पोछा लगाता था। लेकिन किचन में काम करना ही पड़ता था। फिर भी खाना न बना पाने की इस एक कमज़ोरी और असमानता के अलावा हर काम में बराबर का बंटवारा होता है। नयना की इस आदत का असर तिन्नी पर भी हो गया है। नयना ने ही मुझे सिखाया कि काम दोनों बराबर करेंगे। फिर भी मेरे घर और शहर से बाहर होने के कारण उसे ही अधिक ज़िम्मेदारी उठानी पड़ती है। लेकिन वह बता देती है कि इसकी कीमत है। फ्री नहीं है।
नयना के कारण मैं बिहार के एक अर्धसामंती परिवेश में पला बढ़ा एक मर्द काफी बदला हूं। सोच से लेकर बोल तक में। भाषा में अनायास और स्वाभाविक रूप से आने वाले स्त्रीविरोधी शब्दों की पहचान उसी ने करायी। कहा कि देखो यह तुम्हारे भीतर का मर्द बोलता है।
बाकी का बदलाव तिन्नी ला रही है। छुट्टी के दिन तय करती है। कहती है आज बाबा खिलाएगा। बाबा घुमाएगा। बाबा होमवर्क कराएगा। मम्मी कुछ नहीं करेगी। मैं करने लगता हूं। वही सब करने लगता हूं जो तिन्नी कहती है। मैं बदलने लगता हूं। बेहतर होने लगता हूं। बेटियों के साथ दुनिया को देखिए अक्सर मन करता है इसे इस तरह बदल दें। इसके लिए खुद बदल जाएं। बेटियों का यह ब्लाग क्रांतिकारी क़दम है। मैं भी इसका सदस्य हूं।
मैं रवीश कुमार, मैं भी बेटियों के ब्लॉग का सदस्य हूं
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
22 comments:
bahut accha lagaa yahan aa kar...mai bhi ek beti huun magar merey bitiyaa nahin hain...kya jud sakti huun mai bhi yahan ?
रवीश जी दुर्भाग्य से मैं उन लोगों में हूँ जिनकी किस्मत में बेटी नहीं है। बड़ी कमी महसूस होती है बेटी के बिना। गर जाता हूँ तब मुझे भी ऐसा लगता है कि काश मेरी भी बेटी होती तो मेरे स्वेटर का बटन बंद करती, मुझे कहती पापा आप तो एकदम पागल हो..
काश.. काश..
उपर टिप्पणी में गर की बजाय *घर* पढ़ें ।
रवीश जी, ब्लॉग की दुनिया में यह अद्भुत पहल है. मैं बेटियों के ब्लॉग का तहे दिल से स्वागत करता हूँ.
मुझे याद आता है, नरेश सक्सेना की एक अप्रतिम कविता है बेटियों पर उसे यहाँ छापना चाहिए-'जब बेटे साथ नहीं होते बेटियाँ चली आती हैं.' कुछ-कुछ ऐसा ही है.
एक कविता राजेश जोशी की है-'बेटी की विदा'. यह कविता मेरे पास है. आप कहेंगे तो मुहैया करा दूंगा. एक कविता नाचीज़ की भी है. बस आप बताइए कि कहाँ और किस रूप में भेजना है.
आपने आज दिल को छू लेने वाली बात लिखी है पोस्ट में. धन्यवाद!
विजय शंकर जी, आप हमें दोनों कविताएं avinashonly@gmail.com पर भेजें। हम उसे इस ब्लॉग पर प्रकाशित करेंगे।
यह ब्लॉग मुझे पसंद आया बावजूद इसके कि अपनेराम कुंवारे ही है अब तक।
अपना मानना है कि भाई बेटियां ही तो "घर" हैं।
एक तो मेरे पापा जी की बेटी होने का गर्व और सौभाग्य मेरे जीवन के हर पल को आज भी उल्लसित किए हुए है
मैं उन बेटियों में हूँ जो कभी नहीं कहेगी
" अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो "
मैं तो चाहूँगी हर जन्म मैं,
अम्मा और पापा जी की बिटिया बनूँ :-)
और मेरी बेटी सौ. सिंदूर की माँ होने का गर्व है ..
.ये ब्लॉग बन गया ...
हम सभी का एक नया घर हो गया
विश्व जाल पर --
आपका लिखा हमेशा बढिया होता है परन्तु आज्वाली बात दिल से निकली है --
आज अनायास ही इस ब्लाग पर नज़र पडी । दिल को छू लेने वाला वर्णन। मैं खुद दो बेटियों की मां हूं। जानती हूं उनसे ही घर में रौनक है। गाहे-बगाहे वो बन जाती है मेरी भी मां। छोटी बेटी ने टीचर बन कर आपकी यानि अन्तर्जाल की दुनिया से वाकिफ कराया। मेरी एक रचना साक्षी है बेटियों के प्यार की जो कि हिन्दयुग्म पर आ चुकीं है।
वाह क्या बात है, मेरे भी बेटी है, मै भी इसका सदस्य बनना चाहता हूं
ओह हो हम क्या करें बेटे वाले जो है।
हाँ पर हमारे घर मे पापा ने बेटी होने की वजह से कभी भी घर मे कोई फर्क नही किया ।
ये हमारी अपने पापा पर लिखी पोस्ट का लिंक है।
http://mamtatv.blogspot.com/2007/07/blog-post_20.html
ओह!..
नमस्ते, तिन्नी!
रजनी कोठारी जी ने एक बार कहा था कि इस देश की सबसे बड़ी समस्या है स्त्रियों की दशा. शुरू में यह बात समझ में नहीं आती थी. अब समझ आने लगा है कि रजनी कोठारी ठीक ही कहते हैं. शायद बेटियां हमारी उस मानसिकता को बदल दें जिसके कारण स्त्री दशा ठीक हो सके.
अभी चार महीने पहले ही बेटी का बाप बना हूं। और इस ब्लाग ने तो कल्पनाओं को पर लगा दिये है? बहुत अच्छा लगा इस ब्लाग को देखकर, पढ़कर..धन्यवाद।
i like u r blog and i also use in blog but ur blog is very useful in our life
ek khubsurat pahal ke liye mubarkbaad aur shukriya. vakai mein accha laga. kismat se main bhi ek beti ka pita hoon.ek din main use Iran Cultutal Centre se laayi bachchon ki ek kitaab ki kahani suna raha tha.Usme DESH ka jikrya aaya. Pakhi(umar 5 varsha )ko Desh ke mayne main nahi samjha saka. Aap log bhi batain aur sujhai ki 5 saal ki bacchi ko Desh ka matlab kya bataya jaaye?
sanjay joshi
बहुत ही प्यारा ब्लाग है। लेकिन इसकी सदस्यता लेने का क्या तरीका है?
क्यों बदल रहे हैं???पहले से बदले हुए क्यों नहीं हैं..ये सिर्फ आपसे नहीं सब से कह रही हूं जो बदल रहे जिन्हें उनकी बेटियां बदल रहीं हैं...बदलने कि ज़रुरत ही क्यों है..कमी कहां है रह जाती है कि हमें प्यार करने के लिए अच्छा बनने के लिए बदलना पड़ता है..आप अच्छे हैं तो बदल रहे हैं क्योंकि आप समझदार हैं उस बदलाव से खुश हैं खुशी मिल रही है लेकिन कई ऐसे भी हैं जो बदलना ही नहीं चाहते समझना ही नहीं चाहते.. कहीं न कहीं बदलाव तो शुरु हो ही गया है अब बाप बेटियों को समझने लगे हैं, प्यार करने लगे हैं..तो ये बदलाव बहुत अच्छा है... आप हर दिन बदले अपनी बेटी के लिए क्योंकि ज़रुरी नहीं की सब बदले जो उसके जीवन में आंए....
kaash sbhi father ki soch aap jaisi hote sir to aaj samaj ka koi aur hi roop hota
काश सभी पिता की सोच आप जैसी होती तो आज समाज का कोई ओर ही रूप होता.........
soch betiyoon ke pitaaon ki badal rahi hai.lekin maan beton ki soch kyon nahi badal paati.
ravish ji aapke lekh pasand karti hoon
Post a Comment