आप कहेंगे कि इस ब्लाग में मैं क्यों ऐसी बातें लिखने लगी हूँ। पर मुझे लगता है कि यह ज़रूरी है, इस ब्लाग के ज़रिये तो और ज्ज्यादा। आज ही एक ख़बर पढी कि एक लड़की को उसके पिटा ने इसलिए गोली मार दी, क्योंकि उसने प्रेम करके अपनी मर्जी से किसी दूसरी जाती के लडके के साथ शादी कर ली थी। गोली चूक गई तो उसने कुल्हाडी से उसके सिर, धड़ पर इतने वार किए कि उसकी वहीं पर मौत हो गई।
बेटियाँ क्या महज़ घर की इज्ज़त, आबरू, घर के नाम पर मर मिटने वाली एक जीव और एक दास्ताँ भर है, या वह इंसान भी है? उसे अपने जीने का, अपने जीवन पर सोचने का, अपना भला-बुरा जानने-पहचानने का हक है या नहीं? एक और जब दुनिया इतनी आगे बढ़ रही हाय, लड़कियां मिअथाकीय समय से लेकात्र अभी तक पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं, ऐसे में इस तरह की बातें हमारे मन को तोड़ती व झकझोरती हैं। हम समझ नहीं paate कि हम भारती मिश्र, द्रौपदी, सीता, कैकेयी, सुनीता विलियम, कल्पना चावला आदि को देखीं या वासना, अहम् और झूठी मान-मर्यादा का शिकार होती इन मासूमोंन को देखें। मैं इन उत्कर्ष बालाओं को देखते हुए भी इन मासूमों से नज़रें नहीं फेर सकती, यह कह कर कि यह तो होता ही रहता। है। कहीं ना कहीं हमें इस और बढ़ना ही होगा, इस मानसिकता के ल्हिलाफ आवाज़ उठानी ही होगी। बेटियों को अपने जीने का अधिकार चाहिए। यह उसकी मांग नहीं, उसका हक है। सससाद में ३०% का आरक्षण मानागेवाले इनदें। आम जीवन में आम बेटियों से उसका बचपन, उसकी खुशियाँ न छिनी जाएं। इस आम धरती पर की आम बेटियाँ इससे अधिक और कुछ नहीं चाहतीं।
3 comments:
बहुत ही अच्छा कदम है. यह देख कर बहुत प्रसंता हुई. मेरी शुभ कामनाएं आपके साथ है
सुनकर बहुत दुःख हुआ. सबको जीने का बराबर हक़ है. हमको सबसे पहले अपनी और अपनी समाज की मानसिकता बदलनी होगी तभी इस प्रकार की घटनाओं पर काबू पाया जा सकता है
A great poet Faiz Ahmad 'Faiz' wrote this nazm on his younger daughter Muneeza's 8th birthday. Place -now Pakistan. Time & Year - much before we started to treat our daughters as humans.
इक मुनीज़ा हमारी बेटी है
जो बहुत ही प्यारी बेटी है
फूल की तरह उसकी रंगत है
चाँद की तरह उसकी सूरत है
जब वो ख़ुश हो कर मुस्काती है
चांदनी जग में फैल जाती है
उम्र देखो तो आठ साल की है
अक़्ल देखो तो साठ साल की है
वो गाना भी अच्छा गाती है
ग़रचे तुमको नहीं सुनाती है
बात करती है इस क़दर मीठी
जैसे डाली पे कूक बुलबुल की
हाँ जब कोई उसको सताता है
तब ज़रा ग़ुस्सा आ जाता है
पर वो जल्दी से मन जाती है
कब किसी को भला सताती है
है शिगुफ्ता बहुत मिज़ाज उसका
उम्दा है हर काम काज उसका
है मुनीज़ा की आज सालगिरह
हर सू शोर है मुबारक का
चाँद तारे दुआएं देते हैं
फूल उसकी बलायें लेते हैं
गा रही बाग़ में ये बुलबुल
“तुम सलामत रहो मुनीज़ा गुल”
फिर हो ये शोर मुबारक का
आये सौ बार तेरी सालगिरह
सौ क्या सौ हज़ार बार आये
यूँ कहो के बेशुमार आये
लाये अपने साथ ख़ुशी
और हम सब कहा करें यूँ ही
ये मुनीज़ा हमारी बेटी है
ये बहुत ही प्यारी बेटी है
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