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तोषी और लाहौरियों का एक -दूजे के लिए बढ़ता मोह

जैसे -जैसे तोषी (विधा सौम्या) के लाहौर से लौटने के दिन नज़दीक आते जा रहे हैं, उसका जगह और वहाँ केलोगों का उसके प्रति मोह बढ़ता ही जा रहा है। तोषी अब यह सोचा कर नर्वस हो रही है कि अब यह शहर, यहाँ के लोगुससे छूट जायेंगे। वह कहती है, बंगलूर में ऐसा नहीं हुआ क्योंकि वहाँ किसी से इस तरह के रिश्ते बने ही नहीं। पर यहाँ तो हर कोई उसे बेटी, बहन बना लेते हैं और इत्ता इत्ता प्यार देते हैं कि वह डूब सी गई है। अभी-अभी उसकी पहचान एक परिवार से हुई। वहाँ दो बच्चियां भी हैं- एक आठ साल की एक तीन साल की। छोटी तो उससे इतनी हिल मिल गई कि उसके लौटने के वक़्त उसने उसके बौग, चप्पल सब छुपा दिए, कमरा बंद कर दिया, जोर-जोर से रोने लगी और रोते रोते कहती जा रही थी-'विधा आंटी, आप मत जाओ, मैं दूध भी पी लूंगी, आपको गाने भी सुनाउंगी, आपको डांस भी दिखाउंगी। आप जो कहेंगी, करूंगी। बस आप मत जाएं। तोषी कहती है, मुझे अपना बचपन याद आ गया, जब उमा आंटी वगैरह आती थीं तो वह उनके बैग आदि छुपा देती थी। उसके पह्के सभी दरबान चाचा, रसोइया चाचा उअर बाकी सभी लोगों की उससे शिकायत है कि आपने अपने अम्मी- अब्बू से हमारी मिलाकात नहीं करवाई। हमने उनके लिए ये बनाकर रखा था। हम उन्हें अपने घर ले जानेवाले थे। हम उनके साथ बातें करना चाहते थे। वह इन सबकी बातों औ उनके स्नेह में भीगती जा रही है। कहीं नहीं लग रहा कि यह दो ऐसे मुल्कों के बीच वाक़या हो रहा है, जो सियासी रूप में हमेशा एक दूसरे को शक के दायरे में घेरे रहते हैं। यहाँ तो बस दो ज़ज्बातों का मिलन है। मैं सलीम हाशमी ने पहले ही हमसे कहा कि इसे हमें वक्फ में दे देन। वार्डन घजाला कहती हैं तोषी से कि तुम हमें सारी पहनना सिखाओ। उसके कमरे की सफाई करनेवाली बाजी अपने लिए सादियाँ पाकर बेहद खुश हीन और दुआओं की झाडी लगा दी।
यह सब ऐसे देश में हो रहा है। जी हाँ, हमें खुशी और गर्व इस बात का है कि तोषी कम से कम एक इतिहास आर्च रही है, अपने काम के साथ अपने रिश्ते कायम कराने का, एक प्यार, मुहाबत भरा ज़ज्बा बनाने का। इतिहास में बेशक उसका नाम दर्ज न होगा, पर उसे और हमें भी इस बात का सुकून मिलेगा कि हमने मुहब्बत के चाँद बीज बोये हैं। इन बीज से इंशा अल्लाह अमन और भाईचारे के फूल खिलें और सारा चमन इनकी खुसब्हू से महक उठे। आमीन।

1 comment:

Poonam Agrawal said...

ye moh kaash do mulkon mein ho pata...ye rishtaa, ye jajbaa hum us mulk mein paidaa ker paate...

shaayad ker payen ......