मैं कुछ गीतों की खोज में बगल के आंगन में गया था। होलिकांक के पुराने रजिस्टर पर दर्ज गीतों में से कुछ मेरी पसंद के मिल जाते, तो बचपन की कहानी कहना ज़्यादा आसान हो जाता। एक गीत तो ख़ैर गांव में सबको याद है - बगल में बाकरगंज बजार, चुनरिया लागे बूटेदार। इसे मंत्रीजी ने लिखा था, जिनका असल नाम था इंद्रनारायण। इनके बेटे कृष्ण कुमार कश्यप ने मिथिला पेंटिंग को दलितों के बीच लोकप्रिय बनाया। ख़ैर, रजिस्टर तो मिला नहीं, लेकिन उस आंगन की बहनों ने मुझे बिठा लिया।
मेरी बड़ी बहन की दोस्त गोरकी (इसी नाम से हम बचपन से उसे जानते हैं... बहुत गोरी होने की वजह से ही पड़ा होगा...) ने कहा, 'दोपहर तुम्हारे यहां पमरिया नाच हुआ क्या?'
मैंने कहा, 'हां।'
'पर किसके लिए?'
'मेरी बेटी के लिए'
'पर इस गांव में तो कभी बेटियों के पैदा होने पर पमरिया नचाया नहीं गया!'
गोरकी दीदी सही कह रही थी, लेकिन मुझे पहले मालूम नहीं था। दोपहर जब पमरिया हमारे आंगन आया, तो बाबूजी के तेवर कड़े हो गये। उन्होंने कहा कि खानदान में कभी बेटी के लिए पमरिया नहीं नाचा, इसलिए आपलोग बैरंग लौट जाइए। लेकिन मधुबनी के रांटी ज़िले से चल कर आया पमरिया इस तरह जाने को तैयार नहीं हुआ। कहा, जो इच्छा हो, वो दे दीजिए, लेकिन इस तरह मत लौटाइए। लेकिन बाबूजी पांच रुपये देने को तैयार नहीं हुए।
मैं भीतर के आख़िरी कमरे में श्रावणी को गोद में लिये था, जब ये बाबूजी के साथ पमरिया संवाद मेरे कानों तक पहुंचा। छोटे चाचा भी मेरे पास ही थे। मुक्ता भी थी। हम सब बुलबुल की शादी में गांव गये थे। हम तीनों ने कहा कि बेटी के लिए पमरिया नाच अब तक नहीं हुआ, उससे क्या। जब वो आया है, तो नाचेगा।
पमरिया जम कर नाचा। हमारी भाभियां नाचीं। चाचियां नाचीं। बुआ-फूफा-भाई-गोतिया सब नाचे। पुराने सन के गानों से लेकर मॉडर्न रीमिक्स तक गाया गया। आख़िर में बाबूजी ने भी फ़रमाईश की और मोती पमरिया ने उन्हें उनकी पसंद का गाना सुनाया।
मुझे तो इस बात की खुशी थी कि गांव के इतिहास में पहली बार बेटी के पैदा होने पर पमरिया नाचा। तीन महीने की श्रावणी पमरिया की गोद में थी और मुझे अपने आप पर गर्व हो रहा था।
गांव में श्रावणी, पहली बार पमरिया का नाच
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3 comments:
hamaare yaha aisa kabhi nahi hua. pamariya jab bhi kisi bachche ke janm par aayaa, vah naacha, gaayaa. haan, use alabatta bete ke mukabale betii ke janm par paise v chadhave kam milate the. abhi bhi mujhe uska gaaya giit yaad hai, jise apanii kahaaniyon me darz bhi kar chukii hoo- apani je maai rahitii, dard je baabti leti naa,
aahe svaamii jii ke maai badd kathor daradiyo n baante le .pamariya yaad aayaa, giit yaad aayaa, shravanii ko dekhane kii ichchha tez ho gaii.
भई वाह,
मजा आ गया, लोकगीतों की तो धुन ही मन को खुश कर देती है । हमारे मथुरा की तरफ़ तो ऐसा चलन नहीं है, कभी सुना नहीं इस बारे में । अपने पिताजी को फ़ोन करके पूछूँगा ।
सारे वीडियो बहुत अच्छे हैं । इन्हे साझा करने के लिये धन्यवाद और प्यारी बिटिया रानी को ढेर सारा प्यार ।
जो कभी नहीं हुआ है वो अब होगा. बेटों के लिए तो होता ही रहा है अब बेटियों के लिए भी ज़रूर होगा. शुक्रिया अविनाश आपके पहल पर एक गै़रज़रूरी सामाजिक परंपरा को धक्का लगा. साथ में बधाई भी.
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