ये ब्लॉग हम कुछ साथियों ने इस मक़सद से शुरू किया था कि इसमें हम अपनी बेटियों के बारे में बातें करेंगे। उनकी छोटी से छोटी कहानियां आपस में शेयर करेंगे। बेटियों से संवाद करेंगे, ख़तो-किताबत के ज़रिये। ‘बेटी बचाओ’ जैसे नारों से अलग संवेदना की ऐसी पगडंडी पर चलने की कोशिश करेंगे, जिसकी घास पर हमारी बेटियों के पांव डगर-मगर करते हों। हमारे कुछ साथियों ने अच्छा-ख़ासा उत्साह दिखाया। ख़ास कर अजय ब्रह्मात्मज, विमल वर्मा, पुनीता ने। विभा जी की सक्रियता भी सलाम करने योग्य है - लेकिन मुझे लगता है कि उन्हें तोषी-कोशी के बारे में बात करनी चाहिए। आज ही जो उन्होंने लिखा है, अपने जीने का अधिकार चाहिए बेटियों को, या इससे पहले की भी कुछ पोस्ट, जिनमें अख़बारी कतरनों का हवाला देकर बेटियों के अधिकार की बातें गयी हैं, वैसी बातें एनजीओ और बहुत सारे अभियानों में कही जाती हैं। ये ब्लॉग ऐसे नारों के लिए नहीं है। ये हमारी अपनी ज़िंदगी के सुख-दुख साझा करने के लिए है - जिसका सिरा हमारी अपनी बेटियों से जुड़ता है। बाक़ी बातों के लिए सबका अपना निजी ब्लॉग तो है ही।
एक गुज़ारिश, नारों के लिए नहीं है ये ब्लॉग
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3 comments:
Dear Avinash,
blog ke liye aapake vichar padhe. betiyon ki khabaren akhabari katarne bhar nahi hoti aur agar hoti hain to isaka matalab yah hai ki hamare liye apani betiyon ke alave any kisi ki betiyon ke lie koii samvedana nahi hai. mere do lekh ke baad apne ise spsht kar diya. apke vaktavy ka samman karate hue main apane is tarah ke zajbaat ko is blog se alag rakhongi. lekin mujhe tanik batayen ki in khabaron jaisi koii durghatana hamari toshi, koshy ya hamare apano me se kisi ki beti ke sath ho jaye to vah hamari samvedana me aa jayegaa, tab ham is dukh ko baant sakenge, ek doosre ke prati samvedanshil ho sakenge, anyatha ise akhabari kataran man kar chal denge, I m sorry, I don't agree with. But yes, as I said, I will restrict myself as per your desire or as per your objectives. comment karane ya kisi ke comment par uttejit hokar anap shanap bakane se bachtai rahi hoon, par appani samvedana bachaye rakhana chahti hoon.
मेरी दो पोतिआं हैं. क्या मैं उनके बारे में बात कर सकता हूँ आपके ब्लाग पर? यदि हाँ तो कैसे?
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