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बिटिया के बाप होने की चिन्ता....

जब तक मैं बेटी का बाप नहीं बना था,मैं किसी का बेटा भर था,अपनी ज़िन्दगी में मैने खूब घुमाई की ,खूब मस्ती की और संघर्ष भी खूब रहा खैर वो तो अब भी है ,बेटी के बाप बनने से पहले किसी प्रेमी जोड़े को कही छुपकर मिलते देखता या किसी झुरमुठ में बैठे देखता तो मेरे मन में आता कि जो भी प्यार करने वाले हैं उन्हें तो मिला ही देना चाहिये...मैं भी उन्हें कनखियों से देखकर उनके मज़े से थोड़ा मज़ा चुरा लेना चाहता था..पर बेटी के बाप बनते ही सारा नज़रिया बदल सा गया,अब तो हाल ये है कि जब किसी एकदम युवा जोड़े को कहीं गलबहियाँ डाले देखता हूँ तो मेरे अंदर कुछ अलग ही विचार आते है....... जैसे "ये लड़का तो लफ़ूट लग रहा है, कैसे लड़के को चुना है इस बच्ची ने" मन में आता है कि जाकर बता दूँ बच्ची के माँ बाप को, कि बिटिया को सम्भालिये, उसके साथ भी खेला कीजिये, उसके साथ भी कुछ समय गुज़ारिये,उससे भी बात कीजिये नहीं तो ये घूमती रहेगी चिर्कुटों के साथ और उसके साथ रहते रहते उसी चिर्कुट की तरह हो जाएगी... और आप हाथ मलते रह जाएंगे।


अब अगर मेरी बेटी रात को खेल कर समय से वापस नहीं आती तो चिंतित बाप पहुँच जाता है उसके खेलने की जगह और वहाँ वह देखना चाहता है कि बिटिया कैसे बच्चों के साथ खेल रही है, और आँख फ़ाड़ फ़ाड कर उन सबको अच्छी तरह देखता है....अगर उन दोस्तों में लड़के हैं तो देख कर एक्सरे करके पूरी तरह निश्चिंत हो जाना चाहता है कि बेटी जिन बच्चों के साथ खेल रही है वहाँ सब कुछ ठीक तो है, पर मन है कि हमेशा बिटिया को लेकर शशंकित सा बना रहता है।


जब बिटिया चाव से टीवी से सटकर किसी चैनल पर कोई हाना मोन्टेना का शो देख रही हो या हाई स्कूल म्यूज़िकल जैसा कोई विदेशी सीरियल देख रही हो तो ये बाप उसकी तल्लीनता में बिना बाधा पहुँचाए अपनी तरफ़ से उस सीरियल की जाँच पड़ताल मे जुट जाता है कि आखिर क्या बात है इन सीरियलों में जो खाना वाना छोड़कर इतनी तल्लीनता से देखती रहती है बिटिया? वो कार्टून आदि देखे,बच्चों को इस उम्र में जो करना है वो सब करे,हमारे सामने हमेशा बच्ची बनी रहे पर इन सब के बावजूद हमेशा डर सा बना रहता है कि बिटिया समय से पहले बड़ी तो नहीं हो रही है ?


जो एक बात मुझे निजी तौर पर लगती है कि हम बिटिया के बाप लोग भले ही बड़ी बड़ी बाते करें, अपने और बिटिया के सम्बन्धों को लेकर शायद एक आदर्श स्थिति बयां करते रहें कि घर में बिटिया को लेकर महौल बड़ा हंसी खुशी का बना रहता है,पर इन सब के बावजूद... एक बात जो मेरे मन में स्थाई भाव सा बना रहता है कि क्या हम बिटिया के बाप-माँ कुछ ज़्यादा ही शंकालु तो नहीं हो हो गये हैं कि शायद ये स्थिति सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे साथ ही है या दुनिया के सारे माँ बाप कुछ ज़्यादा प्रगतिशील हैं? कि शायद हमारे मन में ही पिछड़ापन पसरा हुआ है, या कि हमारे अंदर अभी भी सामंती अवशेष हैं जिनकी वजह से हमारी सोच ऐसी हो गई है.......पता नहीं ये कुंठा है या किसी प्रकार की शंका? कि बेटी का बाप होना और बेटे का बाप होना क्या दो अलग अलग बाते हैं?

6 comments:

अनिल रघुराज said...

बाप से ज्यादा बेटियों की मां को ये चिंताएं सताती हैं। वैसे आपका अनुभव अपने समाज के तकरीबन सभी बापों का अनुभव है। अच्छा लिखा है, सच्चा लिखा है।
मैं दो बड़ी होती बेटियों का बाप हूं।

nadeem said...

vimal ji aapki bhavnaon ka swagat karta hoon. waise aapne sachchayi se apne dil ke halaat bayan kiye hain. aisa kewal pita ke saath hi nahi hota apitu bhaiyon ke saath bhi hota hai. main abhi tak shadishuda nahi hua par meri bhi chhoti bahane hain jinki chinta mujhe bhi satati hai.

ghughutibasuti said...

संशकित होना भी ठीक है । बेटियों में एक छठी इन्द्री होती है । यदि उसे इसे विकसित करने देंगे, उसमें और उसकी इस समझ में विश्वास करेंगे, उससे उसकी हर खुशी व दुख, यहाँ तक की लड़कों से लगाव की भी चर्चा उससे करेंगे तो सब ठीक रहेगा । यदि अधिक टोका टोकी नहीं करेंगे तो अन्त में वह सही जीवन व सही साथी का ही चुनाव करेगी ।
घुघूती बासूती

Anonymous said...

Nahin mere khayal se aapka stand bilkul sahi hai. Koi kuntha nahin darshata.
Aap logo (ladkiyon ke maa baap) ke liye bahut delicate balance hai.
Kyonki aap ladkiyon ko khatro ke baare mein aagaah kar ke darpok nahin banaana chahte par unki suraksha ki chinta bhi jaayez hai.
Main ek feminist hoon. Aur mere papa ki teen betiyan hain (mujhe include kar ke) aur kai baar jab hum chhote the to lagta tha ki papa aur mummy hamein darna sikha rahein hai kamzor bana rahein par ab 29 ki umr mein jab dikhai deta hai ki patriarchal samaj kitni buri tarah se kisi bhi ladki ke saath, har kadam par pesh aa rahi hai, mujhe lagta hai, is chinta aur dar ki zaroorat bhi hai.
Cheers

neelima garg said...

wow....great...rightly said..parents are always worried for the safety of their daughters .

akshra said...

aapne achchha likha hai bhai. magar ek bat jo mere man me hai vo ye ki badi betiyan jo samajhdar hain unpar to hamen faith karana hi chahiye lekin abodh betiyon ko kaise kahen ki beta, badon ki bat manani chahiye, kyonki hal ke dinon me chhoti ladkiyon ke sath parichit logon dwara apradh badhane ki khabren khoob aa rahi hain.