हमारे ब्लॉगजगत की एक महिला ब्लॉगर ने इस ब्लॉग के लिए मुझे एक पत्र भेजा है और निवेदन किया है इसे बेटियों वाले ब्लॉग पर प्रकाशित किया जाए। इन्होने बेटियों की तरफ़ से अपनी बात कहने की कोशिश की है। मै उनके पत्र मे किसी भी तरह का संपादन न करते हुए, उसको ज्यों का त्यों प्रकाशित कर रहा हूं।आदरणीय पापा जी,
सादर चरण स्पर्श
पापा जी मेरा यह पत्र आप तक नही पहुंचेगा, मै यह जानती हूं। फिर भी लिख रही हूं इस आशा में कि शायद आप पढ़ लें। पापा जी, आप जानते हैं, आप जो हर बात पर यह कहते हैं, कि मै बेटी का बाप हूं, यह बात मुझे बहुत अखरती है। क्यूंकि आपके कहने का लहजा मुझे पसन्द नही है। आप जानते हैं, क्या बीतती है मुझ पर? या क्या आप कभी जानने कि कोशिश करते हैं? नही न! मै जानती हूं। हां, अब तक मै यह समझ गयी हूं कि बेटी का बाप होना बहुत ही जिम्मेदारी का काम है। पर पापा जी मै आपको यक़ीन दिलाना चाहती हूं कि, मै आपकी जिम्मेदारियों मे आपका हाथ बटाऊंगी। आपकी सभी परेशानियों का समाधान भले ही न बन सकूं लेकिन अपनी तरफ से पूरा कोशिश करूंगी। मै हमेशा से यह जानती आयी हूं कि आप मेरी जगह एक बेटे को देखना चाहते थे। इसलिये मेरा होना आपको पसन्द नहीं। लेकिन अब मेरा जन्म हो ही चुका है तो इसमे मेरी कोई भूल नही। मै भी आपका ही अंश हूं। फिर ऐसा क्या है, जो एक बेटा कर सकता है और मै नहीं कर सकती? ऐसा भी नही है कि अब तक मैने जो किया है उस जगह बेटा होता तो इससे ज्यादा करता। उदाहरण के तौर पर अपने चचेरे भाइयों को जब मै देखती हूं तो लगता है मै उनसे कही ज्यादा उड़ सकती हूं। फिर भी आप मेरे पंख बांधे रखना चाहते हैं। भाई की छोटी से छोटी सफलता पर जहां आपका सर गर्व से उठ खड़ा होता है, वहीं पर मै आपको दिखती तक नही? मेरा मन तब यह जानने को इच्छुक होता है कि क्या आपके ही इस अंश को जीने का कोई हक नही?
पापा जी, बचपन से आप मेरे आदर्श रहे। दादा जी आपके किस्से हमेशा सुनाते थे। वो हमेशा कहते कि आप समाज की परवाह नही करते थे। बहुत मेहनतकश इंसान थे। जब भी कोई निश्चय कर लेते ते तो उसे पूरा करके ही दम लेते थे। मेरे मष्तिस्क पर इन कहानियो की अमिट छाप रही। और मै भी आपके नक्शो-कदम पर चलने के लिये उतारू हुई। पर यह क्या?? जब मेरे उड़ने का वक्त आया, आपको समाज का भय खाने लगा। जब मै अपनी राह पर बढ़ने को उतारू हुई, आपके अपने ही विचारों के बन्धन ने मुझे बांध लिया। आपने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि क्या मै उसी इंसान की बेटी हूं जो मेरा आदर्श है? या आदर्श सिर्फ पुरूष समाज के लिए ही है। कुछ कर गुजरने की क्षमता सिर्फ पुरूषों की ही धरोहर होती है, हमारा उस पर कोई हक नही है? फिर पापा जी आप किस समाज से लड़े? यह समझना बहुत ही मुश्किल है, उसी समाज से आपकी ही बोली बोलेगा, या फिर वो समाज जिसे आपने अपने विचारों से बनाया तो और उसी के अधीन हो गये? इन दोनों में से कोई भी बात सच हो तो लगेगा कि मेरा हीरो कोई और ही था। लेकिन आज भी मै अपनी बात पर अडिग हू। आप ही मेरे हीरो हैं, और मै अपनी इस बात को साबित करने के लिए, इतनी मेहनत करूंगी, कि एक दिन आप भी गर्व से सर उठा कर अपनी बनी बनायी इस समाजिक परम्परा का बहिष्कार करेंगे, जो कहता है बेटी का बाप होना जिम्मेदारी का काम है। मै इस समाज को मजबूर कर दूंगी यह कहने के लिए आप इस समाज के हीरो है जो नया रास्ता बनाता है। सिर्फ बनाता ही नहीं उस पर सफलता से चल कर भी दिखाता है।
मेरा हर कदम सिर्फ आपके लिए ही होगा।
आपकी बेटी
4 comments:
इस विश्वास को कम नही होने दीजियेगा. रही बात समाज में पिता को बेटी को लेकर अफ़सोस की तो इस ब्लॉग को देखिये इसे एक बेटी के पिता ने बनाया है और उसे बेटी का बाप होने में कोई अफ़सोस नही है. आप भी हिम्मत न हारे. आप समाज और अपने परिवार के लिए वो सब कुछ कर सकती हैं जो एक लड़का कर सकता है. बस विश्वास रखे और हिम्मत ना हारे
बदलेगी स्थिती जरूर बदलेगी...अगर हर बेटी यह ठान लेगी की वह माँ-बाप के लिये बेटा बन सकती है तो एक दिन जरूर एसा आयेगा जब माता-पिता बेटी होने पर अफ़सोस नही करेंगे...
बहुत खूबसूरत..
हमारे समाज में बेटियों को कमजोर मां बाप ही बनाते हैं.. जो मां बाप बेटियों को बेटा सा ही समझते हैं वह बेटियां कभी कमजोर नही होती हैं..सब मां बाप पर निर्भर करता है.. और दोष हम बेटियों को देते हैं...
http://kavikulwant.blogspot.com
कवि कुलवंत सिंह
lekin unhi udti hui betiyon ke pankh jab shaadi ya pyaar ke naam par kaat dale jayen to........?
ye to sabki jani hui baat hai ki ladkiyan jyada bhavuk aur samvedansheel hoti hain wo apni marji se apne par katwayen poori takleef ke saath to.........?
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